कई सीटों पर घोषित प्रत्याशियों ने अपनी इच्छा के विरुद्ध चुनाव लड़ने की बात कहकर पार्टी की फजीहत करा दी है। कांग्रेस को नजदीक से जानने वालों का कहना है कि संभवतः पहली बार है जब तालमेल के अभाव में इस तरह के फैसले लिए गए हैं। जयपुर से लेकर दिल्ली तक इसकी चर्चा है।
जिताऊ चेहरों की तलाश के लिए पार्टी ने करीब 2 महीने पहले पर्यवेक्षकों को अलग-अलग भेजा था, लेकिन पर्यवेक्षक वास्तविक रिपोर्ट एआईसीसी को नहीं भेज पाए । इसके चलते भी प्रत्याशी चयन में पार्टी लोकसभा क्षेत्रों में रायशुमारी के लिए को गफलत का सामना करना पड़ा।
प्रत्याशी चयन और गठबंधन को लेकर भी प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बीच तालमेल का अभाव रहा। पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और हरीश चौधरी सहित कई अन्य नेता केवल अपने समर्थकों को ही टिकट दिलाने के लिए लॉबिंग करते रहे। अन्य प्रत्याशियों की जमीनी हकीकत के बारे में जानकारी नहीं ली गई कि प्रत्याशी चुनाव लड़ने के इच्छुक भी हैं या नहीं। वहीं, नागौर सीट पर गठबंधन को लेकर नेता धड़ों में बंटे रहे। जिताऊ चेहरों के तौर पर सिंगल नाम तय करके स्क्रीनिंग कमेटी को भेजे गए।
जयपुर– सुनील शर्मा के जयपुर डायलॉग विवाद में आने के बाद उनकी जगह प्रताप सिंह खाचरियावास को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा गया। खाचरियावास ने कहा कि वे चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन पार्टी का फैसला उन्हें मानना पड़ा।
राजसमंद– राजसमंद से पहले प्रत्याशी घोषित किए गए सुदर्शन सिंह रावत ने चुनाव लड़ने से इनकार करते हुए अपने चयन पर ही हैरानी जताई। बाद में पार्टी ने भीलवाड़ा प्रत्याशी घोषित किए दामोदर गुर्जर को राजसमंद से प्रत्याशी बनाया और भीलवाड़ा में गुर्जर की जगह पूर्व विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी को टिकट दिया।
झुंझुनूं– झुंझुनूं लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र ओला के बयान ने पार्टी की फजीहत करा दी। ओला ने कहा कि वे चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। पार्टी की प्रतिष्ठा के चलते वे इस सीट पर अब चुनाव लड़ रहे हैं।
दौसा– दौसा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी मुरारी लाल मीणा ने इच्छा के विरुद्ध चुनाव लड़ने की बात कहकर पार्टी की परेशानी बढ़ा दी थी।