देवराज इंद्र ने जैसे ही दुर्वासा ऋषि को देखा तो असमंजस में पड़ा , पर तुरंत ही प्रणाम किया। दुर्वासा ने आशीर्वाद के रूप में भगवान विष्णु द्वारा प्राप्त पारिजात पुष्प देवराज इंद्र को दिया, पारिजात पुष्प की महानता का विवरण किया । यह पुष्प जिसके मस्तक पर होगा वह तेजस्वी, परम बुद्धिमान बन जाएगा। देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती जैसी देवीयों का भी वास होगा। वह भगवान विष्णु के समान ही पूजित होगा।
देवराज ने अहंकार के कारण पुष्प का अनादर किया। पुष्प को हाथी के सिर पर रख दिया। ऐसा करते ही देवराज इंद्र का तेज समाप्त हो गया। अप्सरा रंभा भी इंद्र को वियोग में छोड़कर चली गई।
हाथी मतवाला होकर इंद्र को छोड़कर चला गया। वन में एक हथिनी उस हाथी पर मोहित हो गई। उसके साथ रहने लगी। हाथी अपने अहंकार में वन के प्राणियों को परेशान और पीड़ित करने लगा।
हाथी मतवाला होकर इंद्र को छोड़कर चला गया। वन में एक हथिनी उस हाथी पर मोहित हो गई। उसके साथ रहने लगी। हाथी अपने अहंकार में वन के प्राणियों को परेशान और पीड़ित करने लगा।
हाथी के अभिमान को कम करने के लिए भगवान विष्णु ने एक लीला रची । उसी हाथी का सिर काट कर गजराज के धड़ पर लगाया। पारिजात पुष्प को प्राप्त वरदान एकदंत को मिला। प्रथम देव के साथ साथ समृद्धि , सफलता के देव के अतिरिक्त जीवन से बाधाओं को दूर करने वाले देव भी बने । और भक्तों का कल्याण किया ।
यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित है पत्रिका इस बारे में कोई पुष्टि नहीं करता है I इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है