जयपुर

जयपुर में 125 करोड़ की लागत से तैयार होगा मल्टीलेवल ट्रांसपोर्टेशन हब, ऊपर मेट्रो और नीचे चलेंगी बसें, सोलर पैनल भी लगेंगे

Jaipur City Project: इस प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने के लिए अतिरिक्त जमीन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत छत पर सोलर पैनल भी लगा सकेंगे।

जयपुरNov 22, 2024 / 08:07 am

Alfiya Khan

प्रतीकात्मक तस्वीर

जयपुर। नारायण सिंह तिराहे पर वाहनों का दबाव कम करने के लिए मल्टीलेवल ट्रांसपोर्टेशन हब भी विकल्प हो सकता है। यानी मौजूदा सड़क पर वाहनों की आवाजाही होती रहेगी और फर्स्ट फ्लोर पर बस स्टैंड विकसित हो सकता है। बस स्टैंड के ऊपर मेट्रा का रूट प्रस्तावित है। यानी बस स्टैंड के ऊपर मेट्रो की आवाजाही होती रहेगी। इस पूरे प्रोजेक्ट में अतिरिक्त जमीन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। जो रिपोर्ट तैयार की गई है, उस पर गौर करें तो 125 करोड़ रुपए में ये प्रोजेक्ट तैयार हो जाएगा। छत पर सोलर पैनल लगाकर बिजली की खपत को भी कम किया जा सकेगा। इस प्रोजेक्ट को लेकर नगरीय विकास विभाग के कुछ अधिकारियों ने भी रुचि दिखाई हैै।

ये है प्लान

फर्स्ट और सेकेंड फ्लोर को लिफ्ट से जोड़ा जाएगा। ऐसे में जो लोग मेट्रो या बस से नारायण सिंह तिराहे पर आएंगे, वे लिफ्ट का उपयोग करते हुए नीचे उतर आएंगे और वहां से शहर में अन्य स्थानों पर जा सकेंगे। मेट्रो स्टेशन पर व्यावसायिक स्थान भी तय किया जाएगा। इसमें कियोस्क लगाकर लीज पर दिए जा सकेंगे।

इसलिए है आवश्यकता

यहां दिन भर में 1500 से अधिक बसें निकलती हैं। ऐसे में जाम की स्थिति बनी रहती है। इस प्रोजेक्ट से यातायात का दबाव कम और व्यवस्थित होगा। साथ ही पैदल यात्रियों की सुरक्षा भी हो सकेगी। कुशल सार्वजनिक परिवहन भी तिराहे पर नजर आएगा। मौजूदा समय की बात करें तो यहां आने-जाने में हमेशा हादसे का डर बना रहता है।
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ये सुविधाएं भी प्रस्तावित

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भीड़ भरे चौराहों पर प्रोजेक्ट को लागू

नारायण सिंह तिराहा सहित शहर के अन्य भीड़ भरे चौराहों पर इस तरह के प्रोजेक्ट को लागू किया जा सकता है। मैंने टीम के साथ मिलकर नारायण सिंह तिराहे पर सर्वे किया था। क्या बेहतर हो सकता है, इस पर काम किया है। इस प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने के लिए अतिरिक्त जमीन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत छत पर सोलर पैनल भी लगा सकेंगे। इससे बिजली का खर्चा भी नहीं होगा। इस पूरे प्रोजेक्ट को बनाने में करीब आठ माह का समय लगा। 
निखिल शर्मा, आर्किटेक्ट
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