मरीज की सेहत से लगातार अनभिज्ञ रहने के बाद जब अस्पताल से भारी भरकम बिल उन्हें थमाया जाता है तो विवाद की नौबत आ जाती है, जो कई बार बड़ा रूप ले लेती है। सभी अस्पतालों में औसतन 15 से 20 प्रतिशत पलंग आईसीयू के होते हैं। जिन पर गंभीर बीमारियों या दुर्घटना के शिकार मरीज भर्ती रहते हैं। राजधानी जयपुर में ही हर साल करीब 50 से अधिक मामले अस्पतालों में मरीज और परिजन के विवाद के सामने आ जाते हैं, जो पुलिस तक पहुंचते हैं। इसके अलावा आए दिन बिलिंग को लेकर होने वाले विवाद में अस्पताल और मरीज दोनों ही पुलिस तक नहीं जाते।
फैक्ट फाइल
20 बड़े निजी अस्पताल
3 हजार मरीज हर समय भर्ती रहते
500 से अधिक मरीज हमेशा गंभीर प्रकृति के भर्ती रहते हैं
5 हजार मरीज हर समय भर्ती रहते हैं एसएमएस, आरयूएचएस और जयपुरिया सहित जयपुर के 12 बड़े निजी अस्पतालों में (जेकेलोन, जनाना, महिला, गणगौरी, मनोरोग, श्वांस रोग संस्थान, कांवटिया, सेठी कॉलोनी, बनीपार्क)
राइट टू हेल्थ में भी नहीं यह राइट
राज्य सरकार की ओर से विधानसभा के मौजूदा सत्र में राइट टू हेल्थ बिल लाया जाना प्रस्तावित है। इस बिल के मसौदे में भी अस्पताल में भर्ती मरीजों को समय-समय पर या मांगने पर हेल्थ अपडेट देने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इस बिल के कई प्रावधानों को अपने अधिकारों का हनन बताते हुए निजी अस्पतालों की ओर से आंदोलन किया जा रहा है।
बढ़ेगा चिकित्सक व परिजनों के बीच विश्वास
आईसीयू में भर्ती मरीजों के परिजन की दिन में एक बार काउंसलिंग की जाती है। मरीज के हेल्थ अपडेट की परिजन को जितनी अधिक जानकारी मिलती है, उतना ही डॉक्टर और परिजन के बीच विश्वास भी बढ़ता है।
डॉ.ईश मुंजाल, अधीक्षक, निजी अस्पताल
वार्ड और आईसीयू के राउंड के समय परिजन को मरीज की सेहत के बारे में ब्रीफिंग देना अच्छा रहता है। आईसीयू में भर्ती मरीजों के परिजन के लिए तो यह बेहद जरूरी है। अब तो तकनीक का जमाना है तो इसका भी सहारा लिया जा सकता है।
डॉ.अशोक गुप्ता, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, जेके लोन अस्पताल