दरअसल, पिछले दिनों ऐसे कई मामले सामने आए हैं। इनमें पुराने आवंटन आदेशों का उपयोग कर फर्जी तरीके से रिकॉर्ड में अमलदरामद (जमाबंदी में नामान्तरण अपडेट करना) कर सरकारी भूमि को खुर्द-बुर्द किया गया। इससे सरकार को हानि व निजी व्यक्तियों को लाभ पहुंचाया गया।
ऐसे मामले सामने आने के बाद राजस्व विभाग ने जानकारी जुटाई। इसमें पता चला कि विभिन्न न्यायालयों में सरकारी भूमि को खातेदारी देने के निर्णयों में उच्च स्तर पर अपील या नो-अपील का निर्णय कराया जाना जरूरी था। इसकी बजाय निचले स्तर पर राजस्व रिकॉर्ड में अमलदरामद कर दिया गया।
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अब कमेटी से लेगी होगी इजाजत
सरकारी जमीन से जुड़े ऐसे मामलों पर निगरानी के लिए राज्य सरकार ने जिला स्तर पर राजकीय भूमि नामान्तरण परामर्श समिति (जीएलएमएसी) का गठन किया है। कलक्टर की अध्यक्षता में गठित कमेटी में अतिरिक्त जिला कलक्टर, उपविधि परामर्शी या संयुक्त विधि परामर्शी, प्रभारी अधिकारी भू-अभिलेख/उपखण्ड अधिकारी (मुख्यालय) भी होंगे। यह भी तय किया गया है कि सरकारी भूमि से संबंधित नामान्तरण आवेदन को पटवारी जीएलएमएससी कमेटी में पेश करेंगे। कमेटी आवंटन आदेश (न्यायिक निर्णय) से संबंधित दस्तावेज का परीक्षण करेगी। इस आधार पर वह अपील या नो अपील का निर्णय करेगी। न्यायालय निर्णय पर सक्षम स्तर से अपील का निर्णय लिया गया है तो कमेटी नामान्तरण आवेदन को निरस्त करने की सिफारिश भी करेगी। राजस्व उपसचिव बिरदी चंद गंगवाल की ओर से जारी यह आदेश सभी जिला कलक्टर को भिजवाए गए हैं।
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इन मामलों से खुली सरकार की आंखें…
-बीकानेर के पूगल में अनकमांड जमीन 1971-1976 के बीच और 1985 में भूमिहीन किसानों को नि:शुल्क आवंटित की गई थी। जमीन की किसी ने सुध नहीं ली तो उसे वापस अराजीराज किया गया। क्षेत्र में जमीन की कीमत बढ़ी तो हाल ही कुछ लोगों ने अराजीराज जमीन को वापस लेने के लिए आवेदन किया। -नागौर के डीडवाना व कुचामन में कस्टोडियन भूमि को किसी के नाम करने के मामले में स्थानीय एसडीएम की भूमिका संदिग्ध पाई थी। इसके बाद राज्य सरकार ने दोनों एसडीएम को निलम्बित कर दिया था। इस मामले में पाया कि निजी खातेदारों के पक्ष में हुए आदेश की अपील होनी चाहिए थी।