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धूल के गुबार, आंखों में आंसू जेडीए के बुलडोजर चलने और निर्माण ढहने से इलाके में धूल के गुबार छाए रहे। सपनों को धराशायी होते देख व्यापारी-परिजनों के आंसू छलकते रहे। परिजन मलबे से चुन-चुनकर सामान निकालते रहे ताकि जो बच जाए उसे संभाल लिया जाए। महिलाएं रो-रोकर अपना दुख पुलिसकर्मियों व वहां आने वाले जन प्रतिनिधियों को सुनाती रहीं। सन्नाटे के बीच बुलडोजर और वाइब्रेटर की आवाजें ही गंजती रहीं। मायूस दुकानदार व परिजन यह उम्मीद भी जताते रहे कि कैसे भी उनका आशियाना बच जाए।
धूल के गुबार, आंखों में आंसू जेडीए के बुलडोजर चलने और निर्माण ढहने से इलाके में धूल के गुबार छाए रहे। सपनों को धराशायी होते देख व्यापारी-परिजनों के आंसू छलकते रहे। परिजन मलबे से चुन-चुनकर सामान निकालते रहे ताकि जो बच जाए उसे संभाल लिया जाए। महिलाएं रो-रोकर अपना दुख पुलिसकर्मियों व वहां आने वाले जन प्रतिनिधियों को सुनाती रहीं। सन्नाटे के बीच बुलडोजर और वाइब्रेटर की आवाजें ही गंजती रहीं। मायूस दुकानदार व परिजन यह उम्मीद भी जताते रहे कि कैसे भी उनका आशियाना बच जाए।
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गोपालपुरा बायपास पर चार दिन से चल रही तोडफ़ोड़ की कार्रवाई के कारण आसपास के इलाके में रहने वाले श्वास और खासकर अस्थमा पीडि़तों को परेशानी हो रही है। निर्माण टूटने से लगातार उड़ रही धूल के गुबार करीब 4-5 किलोमीटर दूर तक फैले नजर आए। इससे इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को परेशानी हो रही है। खास तौर पर अस्थमा पीडित इससे काफी परेशान हो रहे हैं। लोगों का कहना था कि धूल को रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए। डस्ट-एलर्जी से पीडि़त कई पुलिसकर्मी भी कपड़े से मुंह ढककर ड्यूटी निभाते रहे। आसपास से गुजरने वाले लोग भी मुंह पर कपड़ा लपेटकर आते-जाते रहे।
गोपालपुरा बायपास पर चार दिन से चल रही तोडफ़ोड़ की कार्रवाई के कारण आसपास के इलाके में रहने वाले श्वास और खासकर अस्थमा पीडि़तों को परेशानी हो रही है। निर्माण टूटने से लगातार उड़ रही धूल के गुबार करीब 4-5 किलोमीटर दूर तक फैले नजर आए। इससे इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को परेशानी हो रही है। खास तौर पर अस्थमा पीडित इससे काफी परेशान हो रहे हैं। लोगों का कहना था कि धूल को रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए। डस्ट-एलर्जी से पीडि़त कई पुलिसकर्मी भी कपड़े से मुंह ढककर ड्यूटी निभाते रहे। आसपास से गुजरने वाले लोग भी मुंह पर कपड़ा लपेटकर आते-जाते रहे।