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जयपुर

एआई खिलौनों का असर, चार साल की उम्र तक नहीं बोल पा रहे ऐसे बच्चे

– मम्मी पापा से ज्यादा खिलौनों से हो रहे इमोशनली अटैच्ड- चार साल की उम्र तक नहीं बोल पा रहे स्पीकिंग टॉय से खेलने वाले बच्चे
जयपुर। आपने भी घर में बच्चों को खिलौनों से बातें करता हुआ देखा है ? या फिर ऐसा हुआ है कि बच्चा घर के सदस्यों से बात ना कर केवल खिलौने से ही बातें करता है। खिलौनों का सही चयन करना भी बेहद जरूरी है, ताकि कम उम्र से ही बच्चों का मानसिक विकास शुरू हो सके।

जयपुरSep 19, 2023 / 12:39 pm

Shaily Sharma

एआई खिलौनों का असर, चार साल की उम्र तक नहीं बोल पा रहे ऐसे बच्चे

आपने भी घर में बच्चों को खिलौनों से बातें करता हुआ देखा है ? या फिर ऐसा हुआ है कि बच्चा घर के सदस्यों से बात ना कर केवल खिलौने से ही बातें करता है। खिलौनों का सही चयन करना भी बेहद जरूरी है, ताकि कम उम्र से ही बच्चों का मानसिक विकास शुरू हो सके। आज के दौर में माता-पिता अपने बच्चों को वॉइस कंट्रोल और आर्टिफि शियल इंटेलीजेंस वाले खिलौनें थमा रहे हैं। बच्चा पूरे दिन उन खिलौनों से बातें करता रहता है। धीरे -धीरे बच्चों का उनसे भावनात्मक संबंध बनने लग जाता है। ऐसे बच्चे अपने माता-पिता से ज्यादा खिलौनों से इमोशनली अटैच हो रहे हैं।
वे खिलौनों को ही सब कुछ समझने लगते हैं। खिलौनों के अलावा वे घर के दूसरे सदस्यों से बातचीत भी नहीं करते। फ्रंटियर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इससे बच्चे की रचनात्मक क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। स्पीकिंग पर आधारित खिलौनों के प्रयोग के दौरान बच्चा कम शब्दों का ही इस्तेमाल करता है। वह बात भी कम करता है। नए और अनूठे शब्दों के प्रयोग से भी वंचित रहता है। जिस कारण बच्चों में “स्पीच डिले “की समस्या देखी जा रही है, जो आगे चलकर ऑटिज्म का रूप भी लेती है। शहर के मनोचिकित्सकों के पास रोजाना ऐसे बच्चे आ रहे हैं।
टॉपिक एक्सपर्ट : एकांत के हो जाते हैं शिकार

डॉ वंदना चौधरी

बचपन में जो बच्चा देखता है, सीखता है उसका असर उसके दिमाग पर पड़ता है। आजकल अ धिकांश माता -पिता कामकाजी होते हैं, वे कोशिश करते हैं कि बच्चों को ऐसा खिलौना थमा दिया जाए जिससे वे घंटों तक शांत बैठें। यहां शुरु होता है स्पीकिंग टॉय और बच्चों का भावनात्मक संबंध। बच्चे घंटों तक अकेले बैठकर इन खिलौनों से खेलते हैं। धीरे -धीरे उनका सामाजिक और पारिवारिक संपर्क कम होने लगता है। उन्हें एकांतवाद की आदत होने लग जाती है।रोजाना ऐसे 6 से 7 मामलें आ रहे हैं। जिनमें माता-पिता की यह शिकायत रहती है की बच्चा आई कांटेक्ट नहीं करता। किसी से बात नहीं करता। अपनी उम्र के बच्चों से कम बोलता है। ज्यादातर बच्चों की उम्र 6 वर्ष या उससे कम होती है। बढ़ती उम्र में बच्चों के साथ अर्थपूर्ण संवाद होना बेहद जरुरी है। बच्चों को ऐसे खेल खिलाएं। ऐसे टॉय दें, जहां उनकी जिज्ञासा बढ़े। उनके मन में प्रश्न पैदा हो, जिससे बच्चे की रचनात्मक क्षमता बढ़े। एआइ आधारित स्पीकिंग टॉय से बच्चे के मन में ना तो कोई जिज्ञासा पैदा होती है ,ना ही वो कोई नयी चीज सीख पाता है। उसका भाषा विकास भी धीरे होता है ,क्योंकि इन खिलौनों में केवल एक तरफा संवाद किया जाता है।

ऐसे मामले आ रहे है सामने

शब्दों का करती है रिपिटेशन

श्याम नगर निवासी 38 वर्षीय महिला की बेटी 7 साल कि है। अत्यधिक रोने और शोर करने पर बच्ची को स्पीकिंग टॉय या फोन थमा दिया जाता था। जिसे लेकर वह घंटों तक शांत बैठती थी। अभी वह अपनी उम्र के बच्चों से काफी पीछे है। उसे स्पीच डिले की तो समस्या है ही साथ ही वह नए शब्द नहीं बोल पाती। वह केवल कुछ शब्दों का ही दोहराव कर पाती है। चिकित्सकों और मनोरोग विशेषज्ञों से परामर्श लेने पर पता चला कि यह ऑटिज्म के शुरूआती लक्षणों में शामिल है। बच्ची की फिलहाल थैरेपी चल रही है।
घर वालों से कम खिलौनों से ज्यादा करता इंटरेक्शन

सूरजपोल बाजार निवासी 39 वर्षीय महिला का बेटा 5 वर्ष का है। एआइ स्पीकिंग टॉय की उसे इतनी आदत हो गई है की वह घर वालों से ज्यादा खिलौनें से बातचीत करता है। उसे आई कांटेक्ट करने में भी दिक्कत होती है। वह घर और स्कूल में बिलकुल कम बातचीत करता है। शब्दों पर पकड़ भी काफी कमजोर है। महिला ने बताया कि बच्चे को अब घर में ही ऐसा वातावरण देने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उसकी रचनात्मक क्षमता बढे।
बच्चों को ऐसे गेम्स में करें शामिल

ब्रेनबूस्टर गेम्स
बिल्डिंग ब्लॉक
मेपेलॉजी गेम्स
स्पेलिंग गेम्स
बिल्डिंग सेट
बिंगो लेटर गेम्स
रॉक कलेक्शन एंड मिस्ट्री बॉक्स गेम

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