धर्मसभा संयोजक प्रो. मोहनलाल शर्मा ने बताया कि अध्यक्षता जयपुर के वरिष्ठतम ज्योतिषाचार्य प्रो. रामपाल शास्त्री ने की। विधायक बालमुकुंदाचार्य अतिरिक्त केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय निदेशक प्रो. सुदेश शर्मा, प्रो. अर्कनाथ चौधरी, प्रो. भास्कर श्रोत्रिय, प्रो.ईश्वर भट्ट, पंडित विनोद शास्त्री, पं.आदित्य मोहन शर्मा सहित 80 से अधिक विद्वान शामिल हुए। विभिन्न ज्योतिषीय गणनाओं, पंचांगों, और शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर गहन विमर्श कर सूर्य सिद्धांत के आधार पर 31 अक्टूबर को ही दीपमालिका पर्व मनाने पर सर्वसम्मति से निर्णय लिया। विद्वानों का तर्क है कि 31 अक्टूबर को पूरी रात्रि में अमावस्या है। इसलिए इस दिन दीपावली मनाना उचित है। कर्मकाल (पुण्य काल) में तिथि की प्राप्ति होना आवश्यक है, जो 31 अक्टूबर को है। एक नवंबर को कर्म काल या प्रदोष व्यापिनी अमावस्या की प्राप्ति नहीं हो रही है। इस दिन लक्ष्मी पूजन का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाएगा।
सोमनाथ संस्कृत यूनिवर्सिटी, गुजरात के पूर्व कुलपति प्रो. अर्कनाथ चौधरी ने कहा कि पर्व की तिथि का निर्धारण धर्मशास्त्री सूर्य सिद्धांत के आधार पर करते हैं। उसके अनुसार कभी कोई भ्रम पैदा नहीं हुआ। विवाद गणित (खगोलीय गणना करने की एक पारंपरिक पद्धति) से तैयार किए गए पंचांगों ने किया है। शाहपुरा से आए विद्वान पं.किशनलाल उपाध्याय सहित अन्य ने एक तरफा फैसले पर आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि सभी के विचार जानने चाहिए थे यह फैसला एक तरफा है। उन्होंने सभागार में सवाल जवाब भी किए।
शिक्षक रहे अनुपस्थित
जगदगुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविदयालय के आमंत्रित शिक्षक अनुपस्थित रहे। उन्हें सभी के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। इसके अलावा शहर के अन्य पंचागकर्ता भी नहीं पहुंचे। जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रवक्ता शास्त्री कोसलेंद्रदास ने बताया कि दिवाली पर्व एक नवंबर को मनाना शास्त्रसम्मत है। इस वर्ष 31 अक्टूबर को दोपहर 3.53 बजे से कार्तिक अमावस्या तिथि शुरू होकर दूसरे दिन 01 नवम्बर को सूर्यास्त बाद 6. 17 मिनट बजे तक रहेगी। सूर्यास्त शाम 5.40 बजे होगा। शास्त्रों में उल्लेख है कि श्रीमहालक्ष्मी पूजन का मुख्य काल प्रदोष है – प्रदोषे दीपदानलक्ष्मीपूजनादि विहितम् एवं प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयेत्। सभी शास्त्र स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जहां दो दिन पर्वकाल में तिथि हैं, वहां दूसरे दिन पर्व मनाया जाना चाहिए। इस वर्ष 01 नवम्बर को अमावस्या सूर्योदय पर भी है और सूर्यास्त के बाद 6.17 मिनट तक है। ज्योतिषाचार्य पं.दिनेश शर्मा के मुताबिक इस बार दो दिन अमावस्या प्रदोष काल में है तो शास्त्र वचन है – उत्तरे द्युरेव अर्थात जब दोनों दिन प्रदोष में अमावस्या रहे तो उत्तर वाली अर्थात् बाद वाली अमावस्या को ही लक्ष्मी पूजा करनी चाहिए। एक घटी मतलब 24 मिनट से भी ज्यादा समय तक होने से साथ ही स्वाति नक्षत्र के संयोग से दीपावली और लक्ष्मी पूजन एक नवंबर को ही मानना पूर्णत: शास्त्रसम्मत है। ज्योर्तिविद पं.घनश्याम लाल स्वर्णकार के मुताबिक यह निर्णय शास्त्रों के मुताबिक नहीं है।
कब कहां दिवाली
अयोध्या स्थित राममंदिर में एक नवंबर को, काशी में सौर पक्षीय पंचाग सिद्धांत के अनुसार 31 को पर्व मनाया जाएगा। दिल्ली के सभी, राजस्थान के ज्यादातार पंचांगों में एक नवंबर को बताया है। जयपुर के अन्य जयविनोदी पंचांग, सर्वेश्वर जयादित्य पंचाग में 31 अक्टूबर को दिवाली का पर्व बताया है। गोविंददेव जी मंदिर में 31 अक्टूबर को पर्व मनाया जाएगा। व्रत—पर्व के निर्णय के लिए धर्मसिंधु ग्रंथ निर्णायक माना गया है। इससे ही सालभर के पर्वों का निर्धारण होता है। जिसमें दीपावली पर्व के लिए प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को निर्णायक माना है। साथ ही सूर्योदय से लेकर सूर्योस्तक तक और उसके बाद 24 मिनट तक रहने वाली अमावस्या में पर्व को लेकर मनाने में कोई संदेह नहीं है। अमावस्या पर इस बार सूर्योदय से सूर्यास्त अनंतर जयपुर में 37 मिनट रहने से पर्व एक नवंबर को मनाना शास्त्रोक्त है।
पं.दामोदर प्रसाद शर्मा, संपादक, बंशीधर पंचाग व्यापारियों ने 31 अक्टूबर और एक नवंबर दोनों दिन दिवाली मनाने का निर्णय लिया है लेकिन ज्यादातार व्यापारी एक नवंबर के पक्ष में है। व्यापार को लेकर दोनों दिन उत्साह है। बाजार में विशेष रोशनी के साथ ही छोटीचौपड़ स्वागत द्वार पर शहरवासियों को मिश्र के पिरामिड़ की झलक देखने को मिलेगी।
सुभाष गोयल, अध्यक्ष, जयपुर व्यापार मंडल