ऐसे चली गई पुलिस की नौकरी
पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत का जन्म 23 अक्टूबर 1923 को जपयुर के खाचरियावास गांव में हुआ। रोजगार के नाम पर उनकी पुलिस में नौकरी लग गई। साल 1947 में सीकर के हरदयाल टॉकीज के मालिक जयपुर रियासत के पुरोहित थे। एक दिन कुछ पुलिसकर्मी टॉकीज में फिल्म देखने पहुंचे। ऐसे में वहां झगड़ा होने पर एक पुलिसकर्मी ने टॉकीज के मैनेजर को थप्पड़ मार दिया। जिसकी शिकायत रावराजा कल्याण सिंह तक पहुंची तो उन्होंने सीकर के एसपी को तलब किया। इन पुलिस वालों में भैरों सिंह शेखावत थे। उनको फटकार सुनने को मिली और इस्तीफा भी देना पड़ा। ऐसे पुलिस की नौकरी गवां बैठे। यह भी पढ़ें
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आडवाणी ने लड़वाया पहला चुनाव
पुलिस की नौकरी छूटने के बाद बाबोसा खेती करने लगे। 10 भाई-बहनों में एक भाई बिशन सिंह संघ से जुड़े थे। साल 1951 में बिशन सिंह स्कूल टीचर बन गए। एक दिन उनके घर पर लाल कृष्ण आडवाणी आए। आडवाणी उस समय राजस्थान में जनसंघ का काम देखते थे। लालकृष्ण आडवाणी दाता-रामगढ़ सीट से बिशन सिंह को चुनाव लड़ाना चाहते थे। लेकिन उन्होंने नौकरी का हवाला देकर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। फिर भैरोंसिंह को चुनाव लड़ाने को कह दिया। ऐसे भैरों सिंह शेखावत के राजनीतिक जीवन की शुरूआत हुई।पत्नी से 10 रुपये लेकर निकले
आडवाणी के कहने पर भैरोंसिंह का चुनाव लड़ना तय हो गया। वे सीकर गए और पत्नी सूरज कुंवर ने 10 रुपए का नोट दिया। इस नोट को लेकर शेखावत अपने सियासी सफर पर चल निकले। साल 1952 में दाता रामगढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला था। जब विधानसभा के नतीजे आए तो भैरोंसिंह शेखावत विधायक बन गए थे। इसके बाद शेखावत लगातार 3 बार अलग-अलग सीटों से विधायक चुने गए। यह भी पढ़ें
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विरोधी भी बाबोसा के कायल थे
साल 1972 में भैरों सिंह शेखावत गांधीनगर सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे। उनके खिलाफ कांग्रेस के जनार्दन सिंह गहलोत थे। शेखावत के विरोधी होने के बावजूद जनार्दन सिंह के घर पहुंच गए। उन्होंने जनार्दन से कहा- घबड़ाओ मत थें. चुनाव थेईं जीत स्यो। जब चुनाव के नतीजे आए तो ऐसा ही हुआ। भैरोंसिंह 5167 वोटों से चुनाव हार गए थे। साल 1975 में इमरजेंसी लगी और शेखावत पौने दो साल बाद जेल में रहे।इस तरह बाबोसा बने मुख्यमंत्री
साल 1977 में 200 सीटों वाले सूबे में जनता पार्टी को 152 सीटों पर जीत मिली थी। उस समय मुख्यमंत्री के लिए 3 दावेदार थे। जिसमें मास्टर आदित्येंद्र, भैरोंसिंह और तीसरा धड़ा जनसंघ का था। सीएम चेहरे के लिए विधायक दल की बैठक में मास्टर को 42 वोट मिले। जबकि भैरोंसिंह को 110 वोट मिले और इस तरह बाबोसा मुख्यमंत्री बने। यह भी पढ़ें