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जयपुर

राशन सामग्री में मिलावट का खेल जोरों पर,आटा खराब के बावजूद भी सप्लाई जारी

प्रदेश के सभी छात्रावासों के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने खाद्य व अन्य सामान की आपूर्ति का जिम्मा कॉनफेड को दिया है। कॉनफेड ने इसके लिए वर

जयपुरSep 13, 2017 / 09:27 am

rajesh walia

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के 750 छात्रावासों में आपूर्ति किए जा रहे सामान में गुणवत्ता को नजर अंदाज किया गया है। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जो सैम्पल लिए उनमें आटा खराब और खाने योग्य ही नहीं मिला। इसके अलावा अन्य गड़बड़ी मिलने पर सरकार ने इस मामले में विधानसभा में जांच कराने का वादा किया था, उसे भी फाइलों में दबा दिया। आपूर्ति के लिए जिम्मेदार राजस्थान राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ (कॉनफेड) ने तो हद कर दी। ठेका समाप्त होने पर उसी फर्म को कुछ समय के लिए फिर आपूर्ति की जिम्मेदारी दे दी।
प्रदेश के सभी छात्रावासों के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने खाद्य व अन्य सामान की आपूर्ति का जिम्मा कॉनफेड को दिया है। कॉनफेड ने इसके लिए वर्ष 2016-17 के लिए करीब चालीस करोड़ रुपए का टेंडर उदयपुर की एक फर्म को दिया। इन छात्रावासों में करीब चालीस हजार बच्चे रह रहे हैं। हर महीने प्रति छात्र 1040 रुपए का सामान छात्रावास में पहुंचाया जाता है।

खरी नहीं उतरी सरकार
आपूर्ति का मामला पिछले विधानसभा सत्र में भी उठा था। जवाब में सरकार ने कहा था कि पूरे मामले की विस्तृत जांच कराई जाएगी। भुगतान रोकने की बात भी कही गई थी। सात दिन में पेश होने वाली जांच रिपोर्ट का अभी तक कोई अता-पता नहीं है। जांच के बावजूद कंपनी को भुगतान किया जा रहा है। इस बीच मामले में हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई। हाईकोर्ट ने भी मामले में जांच के आदेश दिए हैं।

छात्रावास में पहुंचने वाले हर सामान का ब्रांड व वजन टेंडर में तय है। आपूर्ति शुरू होने के कुछ समय बाद ही कम्पनी गुणवत्ता में खरी नहीं उतरी। चूरू के एक छात्रावास में आटे में गड़बड़ी पाई गई। तत्कालीन कलक्टर के आदेश पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने आटे व अन्य सामान के सैम्पल लिए। जांच में आटा खराब और खाने योग्य नहीं पाया गया। कुछ छात्राओं की तबीयत बिगडऩे पर यह जांच कराई गई थी। इसके अलावा कई जगह सामान का ब्रांड बदल दिया गया। टेंडर में महंगा ब्रांड तय था जबकि छात्रावास में सस्ता ब्रांड पहुंचाया गया। कई सामान की आपूर्ति ही नहीं की गई।
 

बताया जा रहा है कि कई वस्तुओं की दर महंगी होने पर उसकी सप्लाई या तो रोक दी गई या कम कर दी गई। यही नहीं सप्लाई के बिलों में भी गड़बड़ी पाई गई थी। बिल भुगतान के लिए विभाग में दिए जाने वाले आपूर्ति चालान में यह गड़बड़ी पकड़ में आई। विभाग के अधिकारियों के हस्ताक्षरों पर भी सवाल उठाए गए थे। एक चालान पकड़े में आने के बाद भी विभाग ने विस्तृत जांच नहीं की।

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