प्रदूषण बढ़ने से सांस में दिक्कत, नाक बहना, आंखों में जलन और खांसी के मामले बढ़ रहे हैं। कृषि विभाग की ओर से पराली को लेकर सेटेलाइट से मॉनिटरिंग में आग जलाने में सैकड़ों मामले सामने आए हैं। सबसे अधिक 745 मामले हनुमानगढ़ जिले में आए हैं। वहीं, बूंदी में 464 मामले पराली जलाने के पाए गए। इसके अलावा कोटा, बारां, गंगानगर, अनूपगढ़ में भी 200 से 300 मामले सामने आए हैं। बारां जिले में अक्टूबर तक पराली जलाने के मामले काफी संख्या में सामने आए थे।
यों समझें पराली से नुकसान
राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल के पूर्व पर्यावरणविद विजय सिंघल ने बताया कि एक टन पराली जलाने पर दो किलो सल्फर डाइआक्साइड, तीन किलो ठोस कण, 60 किलो कार्बन मोनोआसाइड, 1,460 किलो कार्बन डाइआक्साइड और 199 किलो राख निकलती हैं। ऐसे में जब लाखों टन पराली जलती है तो वायुमंडल की दुर्गति होती है।
सीकर में हवा ज्यादा खराब
सीकर शहर की आबोहवा पिछले चार दिन से लगातार खतरनाक स्तर पर है। एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्तर रेड जोन में पहुंच गया था। एयर क्वालिटी खराब होने के कारण अस्पतालों में सांस और आंखों में जलन के मरीज भी बढ़ गए हैं।
हवा ला रही पड़ोस से ‘जहर’
दिल्ली, हरियाणा व पंजाब के आसपास पराली जलाने से उत्तर की ओर से आ रही हवाओं का रुख राजस्थान की ओर है। जयपुर मौसम केंद्र के मुताबिक उत्तर-पश्चिम दिशा में पंजाब, हरियाणा के सटे हुए इलाकों से होते हुए हवा उत्तरी राजस्थान में धीरे-धीरे पहुंच रही है। अगर हवा की गति बढ़ती है तो राजस्थान में प्रदूषण और धुंध बढ़ सकती है। श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ क्षेत्र में घग्घर नदी बेल्ट में धान की खेती होती है। यहां अगली फसल के लिए किसान पराली जला रहे हैं। वहीं कोटा में ग्रामीण क्षेत्रों में धान की कटाई के बाद किसान पराली जला रहे हैं। गुरुवार को यहां एक्यूआइ 240 रहा, जो खराब श्रेणी में है। यदि यहां प्रदूषण बढ़ता है तो कोटा और सीकर की कोचिंग अर्थव्यवस्था चौपट हो सकती है। यहां देश के विभिन्न राज्यों के लाखों बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग और अन्य परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं।
पराली जलाई तो थानाधिकारी जिम्मेदार
किसी भी खेत में फसल के अवशेष (पराली) जलाए जाते हैं तो संबंधित थानाधिकारी इसके लिए जिम्मेदार माना जाएगा। इस बारे में 21 अक्टूबर को एडीजी क्राइम दिनेश एमएन ने आदेश जारी किए थे और गुरुवार को पुन: इन आदेशों का पालना के लिए निर्देश दिए। आदेश के अनुसार थाने की सीमाओं में यदि कोई व्यक्ति फसल अवशेष जलाता है तो थानाप्रभारी ज्मिेदार होंगे। वे कमेटी से समन्वय कर इन घटनाओं की रोकथाम पर प्रभावी कार्रवाई करें। सतर्क रहने की सलाह
मौसम केंद्र के अनुसार पराली से प्रदूषण का असर अलवर, भिवाड़ी,
भरतपुर, धौलपुर
सीकर, हनुमानगढ़, कोटपुतली से सटे हुए जिलों में तेजी से बढ़ने लगा है। इससे सांस में दिक्कत, नाक बहना, आंखों में जलन और खांसी के मामले बढ़ रहे हैं। चिकित्सकों ने भी सांस संबंधी रोगियों को सतर्क रहने के साथ मास्क को लगाने की सलाह दी है।
उर्वरक क्षमता में कमी
पराली जलाने से जीव-जंतुओं और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचता है। यह न केवल खेत की उर्वरा शक्ति को नष्ट करता है, बल्कि मिट्टी में मौजूद लाभकारी जीव-जंतु भी खत्म हो जाते हैं। इससे मृदा की उर्वरक क्षमता कम होती है। प्रदूषण बढ़ता है तो प्रदेश में करीब 4 हजार करोड़ और जयपुर में रोजाना 800 करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित होगा।
- बाबूलाल गुप्ता, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय उद्योग व्यापार मंडल