यह अपने नाम के अनुसार मिट्टी के बम (या कहें कि गेंद) की आकृति का होता है, जिसके अंदर बीज होता है। इसे बनाने के लिए चिकनी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। इस मिट्टी में वह सारे पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो एक पौधे के लिए आवश्यक होते हैं। मिट्टी को अच्छी तरह से पीस कर भिगोया जाता है और फिर मिट्टी के छोटे -छोटे बॉल्स (बम) बनाए जाते हैं। हर बॉल में एक छेद रख दिया जाता है, जो बीज रखने के काम आता है। इसके बाद इनको अच्छी तरह से सुखाया जाता है और फिर उनके अंदर बीज भरे जाते हैं। यह बीज अपने आस-पास के पेड़-पौधों अथवा घर में प्रयुक्त जूस के बाद फलों से निकले बीज जैसे बील, पपीता, मौसमी, संतरा आदि के भी हो सकते हैं। बीज भरने के बाद बॉल को अच्छी तरह से पैक कर देते हैं। इस तरह “बीज बम” बनकर तैयार हो जाता है।
बीज-बम को अपने आसपास के क्षेत्र जैसे खाली जमीन, तालाब या सड़क के किनारे, बंजर भूमि अथवा गोचर भूमि वाले स्थान पर आसानी से फेंक सकते हैं। इसके लिए सही समय मई व जून का महीना होता है। जुलाई में जब बारिश होती है तो यह बीज नमी पाकर अंकुरित हो जाते हैं तथा पर्याप्त बारिश में पौधे में बदल जाते हैं। खेत की मेड़ अथवा बाड़ इनके लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्थान होता है।
डॉ. आलडिय़ा ने बताया, बीज-बम की विधि से पनपने वाले पौधों का प्रतिशत 30 से 60 प्रतिशत तक होता है। यह मुख्यत: स्थान विशेष की जलवायु तथा बरसात की उपलब्धता पर निर्भर करता है। पर्यावरण संरक्षण में इसका बहुत योगदान है। इस विधि से हम पौधरोपण के व्यापक अभियान का हिस्सा बन सकते हैं। यह विधि मुख्यतया छायादार पौधों के लिए उपयुक्त होती है। वैसे इसमें मुख्य भूमिका जलवायु की रहती है, जैसे गर्म जलवायु में नीम, शीशम, खेजड़ी, बबूल आदि स्थानीय पौधे ज्यादा उपयुक्त रहते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में वहां की वनस्पति लगाई जा सकती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस विधि का उपयोग वहां भी किया जा सकता है, जहां आसानी से पौधे नहीं लगाए जा सकते।