इसमें रैती कश्यप अपने बच्चे को सीने लगाए हुए हैं और पति सामू कश्यप यहां से अपने परिवार व साइकिल को किसी तरह इस नाले से सुरक्षित निकालने का प्रयास कर रहा है। अंत में वह सफल भी हो जाता है। यह परिवार इतनी सारी मुसीबत मतदान करने के लिए उठा रहा है ताकि वह ऐसा जनप्रतिनिधि चुन सके जो उसकी मांग को पूरी कर सके।
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गांव में ही रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा और पुलिया ऐसा नहीं है कि पारापुर से पोलिंग बूथ तक पहुंचने के लिए दूसरा रास्ता नहीं है, लेकिन घर से पास पडऩे की वजह से यह परिवार बरसाती नाले को पार करके जा रहा था। इनके अलावा गांव के दर्जनों लोग भी इसी रास्ते का प्रयोग कर मतदान स्थल पहुंचे थे। रैती कश्यप ने बताया कि उनकी चाहत है कि गांव में ही उन्हें रोजगार मिले और इलाके में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हों। इतना ही नहीं इस नाले पर पुलिया भी बन जाएगा तो उनका रास्ता आसान हो जाएगा। इसी उम्मीद से मतदान के लिए वे लोग पहुंचे थे। यह एक सिख जहां आज पढ़े लिखे इलाके में मतदान का प्रतिशत गिर रहा है। यहां लोग सिर्फ इसलिए मतदान का प्रयोग नहीं करते क्योंकि भीड़ अधिक है या फिर उनके पास कोई अन्य काम हैं। वहीं बस्तर जैसी पिछड़े इलाके में जहां साक्षरता का स्तर भी काफी नीचा हैं और कई इलाके ऐसे हैं जहां नक्सली दहशत हैं बावजूद इसके ऐसी जगह पर मतदान करने के लिए तमाम चुनौतियों सामना करके पहुंच रहे हैं। यह दृष्य अन्य लोगों के लिए एक सीख है। यह कहीं न कहीं लोकतंत्र में मतदान के महत्व को भी बता रहा है साथ ही यह भी बता रहा है कि सिर्फ पढ़ लिख लेने से व्यक्ति जानकार जरूर हो सकता है और लोकतंत्र की बुराई कर सकता है, लेकिन असल में अपनी जिम्मेदारी निभाकर और इसका हिस्सा बनकर सुधार बनना एक अलग बात है।