जबलपुर। साइंस यदि कोई अविष्कार करता है तो लोग उसे आश्चर्य से कम नहीं मानते, लेकिन हम आपको बता दें ही हमारे धर्म ग्रंथों में पूर्व से ही ऐसे वर्णन मिलते हैं जो वैज्ञानिकों के लिए वरदान साबित हुए हैं। ऋषि-मुनि बैठे-बैठे एक स्थान से दूसरे स्थान पर देख लेते थे, इसी अवधारणा पर रेडियो और टेलीविजन का अविष्कार हुआ। पुष्पक विमान की अवधारणा पर हवाई जहाज बने। ऐसे ही एक अगूढ़ रहस्य से हम आपको अवगत करा रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि योग के बल से ही हनुमानजी ने हवा में उडऩे की शक्ति प्राप्त की थी। वाकई अनूठा है यह योग… बाद में हनुमानजी को इस योग के नाम से भी जाना गया। READ ALSO: पल भर में टूटी हड्डियां जोड़ देते हैं ये हनुमान, जानिए रहस्य मुद्रा सिद्ध होते ही उडऩे लगेंगे आप हठ योग और योग के जानकारों के अनुसार खेचरी मुद्रा सिद्ध करते ही हवा में उडऩे की आश्चर्यजनक सिद्धियां प्राप्त होती है। जिस योगक्रिया के माध्यम से आकाश में उडऩे की अलौकिक शक्ति प्राप्त हो उसे खेचरी कहते हैं। इस क्रिया की खास विशेषता यह भी है कि यदि इसे सिद्ध कर लिया जाए तो फिर उस व्यक्ति को दिव्य आभा, कांति, सौंदर्य, शरीर की प्राप्ति होती है। यह है खेचरी मुद्रा हठ योग में वर्णन मिलता है कि यह योगक्रिया बहुत ही कठिन है। तालू के गहरेनुमा स्थल पर जीभ की नोक को रखना और फिर उसे उलटने के क्रम को खेचरी मुद्रा कहते हैं। तालू के एक भाग में हाथी के सूंढऩुमा कपिल कुहर ग्रंथी लटकती है। इन दोनों को जीभ के सामने वाले भाग को पास ले जाने का क्रम चलता है और एक दिन कपाल से होकर प्राणवायु का संचार होने लगता है। इस क्रिया के बाद से हृदयस्थल से अमृत प्रस्फुटित होता है जिससे दिव्यशक्ति से आप ओतप्रोत हो जाते हैं। यह मुद्रा ब्रम्हांड की सर्वसत्ताधिपति भगवान नारायण से भी साक्षात्कार कराती है। READ ALSO: इन चार स्थानों पर सम्मोहित कर लेती हैं नर्मदा, जानिए अजूबा रहस्य खेचरी नंदन पड़ा नाम इस योग को हनुमानजी से सिद्ध किया था तभी से खेचरी नंदन कहलाए। हनुमानजी इस आश्चर्यजनक सिद्धि के माध्यम से ही पवन वेग के साथ आकाश में उड़ते थे। हठ योग में ऐसी कई सिद्धियों का वर्णन है, जिसे जानकर आप आश्चर्य चकित हो उठेंगे। हठयोग से मिलती हैं सिद्धियां यदि आप भी अनूठी व आश्चर्यजनक सिद्धियां पाना चाहते हैं तो हठयोग के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। योग के जानकार राजेश पाठक बताते हैं कि मुद्राओं का तत्काल प्रभाव शरीर की आंतरिक ग्रंथियों पर पड़ता है। क्रियाओं को तत्काल प्रभावित कर चमत्कारी फायदा दिलाती हैं। आष्टांग योग के माध्यम से ही ऋषि सिद्धी प्राप्त करते थे।