जबलपुर

Health update : लाखों की वायरोलॉजी लैब खोली, लेकिन मशीन देना भूल गई सरकार

Health update : लाखों की वायरोलॉजी लैब खोली, लेकिन मशीन देना भूल गई सरकार

जबलपुरFeb 25, 2024 / 12:01 pm

Lalit kostha

Medical College Hospital

जबलपुर. शहर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोरोना महामारी के बाद वायरोलॉजी लैब खोली गई थी। लेकिन यहां जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन नहीं है। इस कारण वायरस जन्य बीमारी में नया वेरिएंट आने पर उसका पता नहीं चल पाता है। मशीन से छह घंटे में जांच पूरी हो जाती है। आइसीएमआर में भी यह सुविधा नहीं है। वायरस का पता लगाने के लिए सैम्पल भोपाल के एम्स में भेजना पड़ता है। वहां से रिपोर्ट आने में 20 दिन का समय लग जाता है। इस दौरान मरीज का उपचार चिकित्सकों को अंदाज से करना होता है।

जबलपुर से भोपाल AIIMS भेजे जा रहे नमूने, रिपोर्ट में लग रहे 20 दिन
जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन हो तो 6 घंटे में लग सकता है नए वेरिएंट का पता

 

15 दिन में मिली थी रिपोर्ट
जानकारों के अनुसार कोरोना, स्वाइन फ्लू जैसी वायरस जन्य बीमारियों में नए वेरिएंट का पता लगाना आवश्यक है।पिछले साल 21 दिसम्बर को रांझी निवासी 60 वर्षीय महिला की कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव आई थी। महिला कोरोना के नए वेरिएंट जेएन1 से पीड़ित नहीं है, इसका पता लगाने के लिए उसका सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए एम्स भोपाल भेजा गया था। उसकी रिपोर्ट पंद्रह दिन में आई थी। इसके पहले ही महिला की मौत हो गई थी।

महिला निकली पॉजीटिव
कनाडा से आई पोलीपाथर निवासी एक महिला की रिपोर्ट कोरोना पॉजीटिव आई थी। महिला कोरोना के नए वेरिएंट जेएन 1 से पीड़ित नहीं है इसका पता लगाने के लिए सैम्पल भोपाल एम्स भेजा गया। महिला को होम आइसोलेट किया गया। कोरोना प्रोटोकॉल के तहत घर में उपचार लेने के बाद वह स्वस्थ हो गई। भोपाल एम्स से उनकी रिपोर्ट आने में 17 दिन लगे।

 

यह है फायदा
●कई प्रकार की जांच समेत कोरोना के नए वैरिएंट का पता लगाने में उपयोगी।
●इससे आरएनए की जेनेटिक जानकारी मिलती है।
●पता चलता है कि वायरस कैसा है, कैसे हमला करता है और कैसे बढ़ता है।
●नया वायरस पुराने वायरस से कैसे और कितना अलग है।
●डाक्टर समझ पाते हैं कि शरीर में वायरस की स्थिति क्या है।
●शरीर में कितना विकसित हो चुका है।
●सामान्यत: वायरस को विकसित होने में एक सप्ताह का समय लगता है।

बीमारियों के नए स्ट्रेन के बारे में लग जाता है पता

जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस की विस्तृत जानकारी है। कोई वायरस कैसा है, किस तरह दिखता है, इसकी जानकारी जीनोम से मिलती है। इसी वायरस के विशाल समूह को जीनोम कहा जाता है। वायरस के बारे में जानने की विधि को जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं। इससे कोरोना, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों के नए स्ट्रेन के बारे में पता चला है।

कोरोना के बाद मेडिकल कॉलेज में वायरोलॉजी लैब तैयार की गई है। यहां जीनोम सीक्वेंसिंग की सुविधा नहीं है। जांच के लिए सैम्पल भोपाल एम्स भेजे जाते हैं।
– डॉ. अरविंद शर्मा, अधीक्षक, मेडिकल अस्पताल

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