क्लोनिंग की प्रक्रिया में वैज्ञानिकों को 80 फीसदी सफलता मिल चुकी है। वैज्ञानिक ऑप्टीमाइजेशन एवं ट्रांसफर करने की स्टेज तक पहुंच गए हैं। आशा व्यक्त की जा रही है कि जल्द ही इसके बेहतर परिणाम सामने होंगे। गौरतलब है कि क्लोनिंग द्वारा किसी कोशिका से कोई अन्य जीवित हिस्सा या एक संपूर्ण जीव के शुद्ध प्रतिरूप का निर्माण होता है। आकार व्यवहार से लेकर उत्पादन में 100 फीसदी अंतर नहीं होता है।
क्लोनिंग तकनीक में बकरी की ओवरीज से एग सेल को निकालकर न्यूक्लियस एवं डीएनए को हटाया जाता है। बकरी की त्वचा से स्किन फाइब्रोग्लास सेल्स ली जाती है। इस सेल्स में न्यूक्लियस डालकर कल्चर मीडिया में ग्रो कराया जाता है। इसे विभिन्न तरह की प्रक्रियाओं से होकर गुजारा जाता है। इसके बाद यह फर्टीलाइज्ड एग की तरह काम करने लगते हैं। फर्टीलाइजेशन के लिए इसमें तरंगों के माध्यम सेल्स का विभाजन किया जाता है। इससे एग विकसित होकर फीमेल में ट्रांसफर कर क्लोन तैयार किया जाता है।
डॉ.एसपी सिंह, वैज्ञानिक एनिमल फिजियोलॉजी एंड रिप्रोडक्शन सीआईआरजी