ज्योतिषाचार्य सचिनदेव महाराज के अनुार पितृपक्ष में ज्ञान अज्ञात पूर्वजों का पिंडदान व तर्पण करना उनकी आत्मा को शांति प्रदान कर मोक्ष मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए इनकी पूजा विधि पूर्वक करना आवश्यक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पिंडदान में की गई लापरवाही से पितरों की आत्मा नाराज हो सकती है। ऐसे में वे आशीर्वाद दिए बिना ही लौट जाते हैं।
सावन में आ जाते हैं पितृ
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध करने की परंपरा इंद्र के द्वारा शुरू की गई थी। जिसके बाद से यह अब तक जारी है। शास्त्रों में बताई गई विधि से श्राद्ध करने पर ही पितृ प्रसन्न होते हैं। श्रद्धा भाव के बिना पितरों का पूजन नहीं करना चाहिए।
एक मान्यता यह भी है कि सावन माह की पूर्णिमा के दिन ही पितृ धरती पर आज जाते हैं। वे नई कुशा की कोपलों पर विराजमान हो जाते हैं। पितृपक्ष में जो लोग जरूरतमंदों भोजन, दान पुण्य करता है उसे पितृ अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृपक्ष में जो भोजन पूर्वजों के नाम से निकाला जाता है उसे पितर सूक्ष्म रूप से ग्रहण कर लेते हैं।
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ग्रंथों में तीन पीढिय़ों तक श्राद्ध करने का विधान बताया गया है। पुराणों के अनुसार यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते है, जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकते है।
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पिता को वसु के समान माना जाता है
पंडित जनार्दन शुक्ला के अनुसार तीन पूर्वज पिता, दादा तथा परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है। पिता को वसु के समान माना जाता है। रुद्र देवता को दादा के समान माना जाता है। आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते है। शास्त्रों के अनुसार यह श्राद्ध के दिन श्राद्ध कराने वाले के शरीर में प्रवेश करते हैं अथवा ऐसा भी माना जाता है कि श्राद्ध के समय यह वहां मौजूद रहते हैं और नियमानुसार उचित तरीके से कराए गए श्राद्ध से तृप्त होकर वह अपने वंशजों को सपरिवार सुख तथा समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध कर्म में उच्चारित मंत्रों तथा आहुतियों को वह अपने साथ ले जाकर अन्य पितरों तक भी पहुंचाते हैं।