गुरुवार को एमबीबीएस की डिग्री पूरी करने के उपलक्ष्य में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह के साक्षी संजय के पिता कलम सिंह चौहान भी बने। गले में सफेद गमछा, धुंधली सी हॉफ शर्ट और एक पुराना हॉफ पैंट बस इतना ही तो तन में पहनावा था कलम सिंह के। पर सर गर्व से ऊंचा किए हुए उसपर साफा बांधकर आलीराजपुर से जबलपुर मेडिकल कॉलेज आए थे। बेटे ने जैसे ही अपनी एमबीबीएस की डिग्री उन्हें समर्पित करते हुए थमाई तो आंसू छलक आए। यह आंसू भी दो तरह के थे, एक खुशी के और दूसरे पत्नी यानी संजय की मां सुरबाई की गैरमौजूदगी के, जिनका बीते साल निधन हो गया था। आखिर बेटे के लिए ये सपना दोनों ने मिलकर ही तो देखा था, लेकिन देखने के लिए केवल दो आंखें ही रह गईं हैं।
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संघर्ष से भरा रहा सफर
डॉ संजय सिंह चौहान समाज के आखिरी छोर में रहने वाले भिलाला आदिवासी समाज से आते हैं। आलीराजपुर जिले के जोबट तहसील के छोटे से गांव पिप्पलिया में पिता को विरासत में जमीन की छोटी सी जोत मिली थी। संजय बताते हैं कि उसी में माता-पिता ने हाड़-तोड़ मेहनत कर खेती की और उन्हें और बड़ी बहन को बड़ा किया। बकौल संजय माता-पिता दोनों निरक्षर थे, लेकिन उन दोनों को पढ़ाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। वे कहते हैं अभावों के दिन अब भी याद है, लेकिन मदद के इरादे से जब भी खेत पर पहुंच जाते तो पिता पढ़ने के लिए वापस लौटा देते थे। यह भी पढ़ें- शराबी टीचर ने स्कूल में काटी बच्ची की चोटी, गालियां देते हुए बोला- जो उखाड़ना है उखाड़ लो, video Viral