देश के 142 रचनाकारों ने भारतीय संविधान को छंदबद्ध किया ग्रंथ निर्माण में जबलपुर के रचनाकारों का योगदान भी महत्वपूर्ण रहा है, जिन्होंने छंदों के जरिए संविधान को आसान रूप में परिभाषित करने का काम किया है। काव्य का भारतीय समाज के विकास में बड़ा योगदान रहा है। रामायण से लेकर महाभारत तक, आल्हा से लेकर लोक संस्कृति से जुड़े दूसरे ग्रंथ तक पद्य रूप में ढलने के बाद ज्यादा लोकप्रिय हुए। इसका कारण, इन्हें कंठस्थ करना आसान था। भारतीय संविधान ही सबसे आधुनिक ग्रंथ है, जिसका पद्य में रूपांतरण नहीं किया गया था। अब इसे पद्य शैली में पेश किया गया है। हालांकि इससे पहले संविधान को शायरी में ढालने की कोशिश भी की जा चुकी है।
इन्होंने भी दिया योगदान :
जबलपुर से सात रचनाकारों का इस कार्य में योगदान रहा। शहर से इस ग्रंथ में संजीव वर्मा ‘सलिल’, अनुराधा पारे ‘अवि’, सुनीता परसाई ‘चारू’, आशा जैन, भारती पाराशर, अनुराधा गर्ग, कृष्णा राजपूत छंद साधकों ने अपनी रचनाओं का समावेश किया है। मध्यप्रदेश से 10 साहित्यकार इसकी रचना से जुड़े रहे हैं।
जबलपुर से सात रचनाकारों का इस कार्य में योगदान रहा। शहर से इस ग्रंथ में संजीव वर्मा ‘सलिल’, अनुराधा पारे ‘अवि’, सुनीता परसाई ‘चारू’, आशा जैन, भारती पाराशर, अनुराधा गर्ग, कृष्णा राजपूत छंद साधकों ने अपनी रचनाओं का समावेश किया है। मध्यप्रदेश से 10 साहित्यकार इसकी रचना से जुड़े रहे हैं।
उद्देश्य…भाषा को आसान बनाना
दोहे लिखने में अहम भूमिका में रहे रचनाकार संजीव वर्मा सलिल ने बताया कि संविधान को ग्रंथ के रूप में लिखने का उद्देश्य इसकी भाषा को आसान बनाना है। यह विद्यार्थियों के साथ शोधार्थियों और प्रैक्टिसिंग वकीलों के लिए भी मददगार होगा। मकसद यही है कि साधारण व्यक्तिभी कानूनी ज्ञान आसानी से समझ सके।
दोहे लिखने में अहम भूमिका में रहे रचनाकार संजीव वर्मा सलिल ने बताया कि संविधान को ग्रंथ के रूप में लिखने का उद्देश्य इसकी भाषा को आसान बनाना है। यह विद्यार्थियों के साथ शोधार्थियों और प्रैक्टिसिंग वकीलों के लिए भी मददगार होगा। मकसद यही है कि साधारण व्यक्तिभी कानूनी ज्ञान आसानी से समझ सके।