- तपस्वी 120 वर्षीय सीताराम दास दद्दा ने शास्त्रों में खेाजी थी तपोस्थली
- दिलाई पहचान, यहीं हुए ब्रह्मलीन
- उन्होंने ही शुरू कराई थी इस घाट पर कालसर्प दोष निवारण पूजा
दद्दा के शिष्य एवं वर्तमान मार्कंडेय धाम के संचालक विचित्र महाराज ने बताया दद्दा निरंतर भ्रमण करते रहते थे। 80-90 के दशक में परिक्रमा के दौरान यहां आए तो उन्हें नर्मदा माई का आदेश हुआ कि यहीं रहकर लोगों का मार्गदर्शन करो। इसके बाद वे यहां से कहीं नहीं गए। उन्होंने जिज्ञासा के चलते शास्त्रों में नर्मदा के इस तट की विशेषताएं खोजीं तो पाया कि यहां मार्कंडेय ऋषि ने तपस्या की थी। इसके बाद वे लोगों को यहां की खूबियां बताकर जागरुक करते रहे। साथ तपस्थली होने के चलते उन्होंने विधि एवं शास्त्र सम्मत काल सर्प दोष निवारण पूजन भी शुरू कराया था। पांच दशकों बाद भी यहां प्रत्येक नागपंचमी के दिन यह पूजन होता है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं।
![Kaal Sarp Dosh nivaran puja](https://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2024/05/markandey-dham-03.jpg?w=640)
मार्कंडेय धाम में आज भी सैंकड़ों वर्ष पुराने पेड़ लगे हैं, जहां संत सीताराम दास दद्दा सहित कई तपस्वियों ने तप किया था। यह आज भी पूर्ण रूप से प्राकृतिक है। यहां पक्के निर्माण की बात आते ही जो मंदिर आदि बने हैं, वे भी दरारने लगते हैं। इसलिए जो दद्दा ने निर्माण कराया था, वही आज भी है।
120 वर्ष की आयु पूर्ण कर तपस्वी सीताराम दास दद्दा ने साल 25 मई 2012 को मार्कंडेय धाम नर्मदा किनारे नर्मदे हर के बोलों के साथ शरीर का त्याग कर दिया। उनके समाधिस्थ होने पर देश विदेश के शिष्य जबलपुर पहुंचे थे, इनमें कई नामी हस्तियां भी शामिल रही हैं। इस साल भी दो दिवसीय समाधि उत्सव मनाया जा रहा है।