दरअसल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव खत्म होते ही बिजली कंपनियों ने प्रदेश की जनता को 440 वॉल्ट का झटका देने की तैयारी कर ली है। कलेक्शन एफिशिएंसी में 30 फीसदी की गिरावट आई है, जिसके चलते बिजली कंपनियों ने मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग को 3 से 5 फीसदी दरे में बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा है। ऐसे में बिजली कंपनियां आम उपभोक्ता से इसकी भरपाई करने की तैयारी कर रही हैं। विद्युत अधिनियम की धारा 64 के तहत 120 दिन की समय सीमा है। प्रस्ताव के 120 दिन तक फैसला नहीं लिया गया तो प्रस्ताव पास माना जाता है।
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इसलिए बिजली कंपनियां बढ़ाना चाह रही दाम
हालांकि, दूसरी तरफ बिजली कंपनियों द्वारा बढ़ाई जा रही दर का विरोध करते हुए नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने विद्युत नियामक आयोग में आपत्ति लगा दी है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच अध्यक्ष डॉ पीजी नाजपांडे के अनुसार सरकार ने अपनी ओर से नियामक आयोग के पास 3 से 5 फीसदी बिजली दरें बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा है। नियामक आयोग बार-बार ये कहता है कि कलेक्शन एफिशिएंसी 90 फीसदी से अधिक होनी चाहिए, लेकिन कलेक्शन एफिशिएंसी पिछले तीन महीनों से 30 फीसदी तक कम होकर लगभग 60 फीसद पर आ गई है।
फाइनेंशियल मिस मैनेजमेंट ने बिगाड़े हालात
कलेक्शन एफिशिएंसी का मतलब ये है कि आपका दिया हुआ बिल जमा हुआ है या नहीं। उस करेक्शन के आधार पर रेवेन्यू तय होता है। सरकार की तरफ से करीब 13 हजार करोड़ विभिन्न योजनाओं में लिया था, वो अबतक विद्युत् कंपनी को नहीं मिला है। इसलिए कंपनियों का रेवेन्यू घट गया है। फाइनेंशियल मिस मैनेजमेंट के चलते बिजली दर बढ़ाने की नौबत आ गई है।