मान्यता के बाने आकर्षण का केन्द्र- मंदिर के सेवक सुरेन्द्र कुमार साहू ने बताया कि माता की दो तरह से पूजा होती है। एक सात्विक एक तामसिक। सात्विक पूजा आरती, फल फूल का प्रसाद बांटा जाता है। वहीं तामसिक पूजन आधी रात को होती है जिसमें तंत्र मंत्र आदि सिद्ध करने लोग आते हैं। माता के जवारे और बाने मुख्य आकर्षण का केन्द्र हैं। जवारा जुलूस जब निकलता है तो मान्यता के बाने पहनने वालों की संख्या कई सैकड़ा हो जाती है। इनका जवारा जुलूस अपने आप में पूरा दशहरा जैसा होता है।
ऐसा है इतिहास- स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यहां देवी के चरणों में मान्यता बोलकर नारियल रखा जाता है। इस मंदिर का इतिहास लगभग 1500 साल पुराना बताया जाता है। यहां एक शिला एवं पुरानी प्रतिमा है जिसका पूजन हुआ करता था। इसके बाद एक और प्रतिमा की स्थापना हुई लेकिन उसका इतिहास किसी को ज्ञात नहीं है। बूढ़ी खेरमाई का दरबार जबलपुर शहर के चारखंभा क्षेत्र में स्थित है और संस्कारधानी के शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है।