यह स्थिति कंपनी कर्मचारियों की हड़़ताल की वजह से बनी। कर्मचारियों ने कल कंपनी के खिलाफ काम बंद कर दिया था। इसका असर ट्रेनों की सफाई पर पड़ा। रेल अधिकारियों ने कर्मचारियों को जैसे-तैसे मनाकर काम पर लौटाया, लेकिन जब तक कर्मचारी काम पर लौटे, रेल प्रशासन को तीन ट्रेनें जिनमें पटना, पुणे और कोच्चिवेली को सफाई कराए बगैर ही रवाना करना पड़ा।
10-12 कर्मचारी करते साफ
जानकारी के अनुसार ट्रेनों की नियमित सफाई कराने की जिम्मेदारी कंपनी की है, लेकिन कंपनी के खिलाफ कर्मचारी हमेशा आंदोलन करते रहते हैं। एक ट्रेन की पूरी तरह से सफाई में करीब 6 घंटे का समय लगता है और 10 से 12 कर्मचारी जुटते हैं। ट्रेन की सफाई के दौरान सीट से लेकर फ्लोर, छत, शौचालय से लेकर ट्रेन की बाहर से धुलाई तक शामिल है। सफाई के दौरान कर्मचारी केमिकल व मशीनों का भी उपयोग करते हैं। वहीं बाहर से ट्रेन की धुलाई में ट्रीट वाटर का उपयोग किया जाता है। ट्रेन की सफाई के बाद कंपनी को पिट लाइन की साफ सफाई भी करना होती है। यह उसकी जिम्मेदारी है। कई बार कर्मचारी पूरी तरह से सफाई नहीं करते और कोङ्क्षचग डिपो के पास गंदगी नजर आती है।
जानकारी के अनुसार ट्रेनों की नियमित सफाई कराने की जिम्मेदारी कंपनी की है, लेकिन कंपनी के खिलाफ कर्मचारी हमेशा आंदोलन करते रहते हैं। एक ट्रेन की पूरी तरह से सफाई में करीब 6 घंटे का समय लगता है और 10 से 12 कर्मचारी जुटते हैं। ट्रेन की सफाई के दौरान सीट से लेकर फ्लोर, छत, शौचालय से लेकर ट्रेन की बाहर से धुलाई तक शामिल है। सफाई के दौरान कर्मचारी केमिकल व मशीनों का भी उपयोग करते हैं। वहीं बाहर से ट्रेन की धुलाई में ट्रीट वाटर का उपयोग किया जाता है। ट्रेन की सफाई के बाद कंपनी को पिट लाइन की साफ सफाई भी करना होती है। यह उसकी जिम्मेदारी है। कई बार कर्मचारी पूरी तरह से सफाई नहीं करते और कोङ्क्षचग डिपो के पास गंदगी नजर आती है।