आजादी के बाद भी रही भौतिक गुलामी
लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि होसबोले ने कहा कि मैकाले की शिक्षा पद्धति और मार्क्सवादी विचारों के कारण राजनीतिक स्वतंत्रता के बाद भी देश दशकों तक भौतिक गुलामी में रहा। समाज को गुलामी से मुक्त होना चाहिए। गुलाम मानसिकता के कारण विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में वर्षों तक हिंदुत्व को नकारने और इतिहास पर घृणा करने की प्रवृति रही। इससे समाज को जिस प्रकार विकसित होना था, वैसा नहीं हो पाया। भारतीयता, स्वदेशी, हिंदुत्व को लेकर हमेशा से संघ का आग्रह रहा है, क्योंकि एक राष्ट्र खुद के स्वाभिमान को समझकर आगे बढ़े। उसी के बल पर देश विकसित होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ये भवन समाज ने बनवाया और समाज के उपयोग के लिए है। स्मारक समिति ने कभी विचार नहीं किया कि हमारी संपत्ति होनी चाहिए, लेकिन कार्य विस्तार और प्रशिक्षण के लिए स्थान की आवश्यकता होने के कारण निर्माण हुआ है। देशभर में विविध सेवा कार्य, आपदा व राहत कार्य चलाए जा रहे हैं, जिसके लिए प्रशिक्षण की जरूरत होती है, इसलिए भवन में कमरों का निर्माण भी किया है। कार्यालय सुदर्शनजी के नाम पर रखा गया है, वे सदैव भारत के स्व को दृढ़ करने के लिए समाज से आग्रह करते थे। कार्यालय के लोकार्पण का दिन सुदर्शन के उसी संकल्प और स्वप्न को पूर्ण करने के निश्चय का दिन है। इस दौरान सुरेश सोनी, दीपक विस्पुते, गणवंत कोठारी, कृष्णकुमार अष्ठाना आदि मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन प्रांत कार्यवाह विनीत नवाथे ने किया।