best mantra for happy life: जीवन में शांति तब आती है, जब उपेक्षा भाव आता है और अशांति तब आती है, जब अपेक्षा भाव आता है। जब किसी को लेकर कोई अपेक्षा ही नहीं होगी तो दु:ख नहीं आएगा। मैंने एक मंत्र दिया है- ओम इग्नोराय नम:। यानी हर्ष के दिन हो तो उसे भी इग्नोर करें और दु:ख के दिन हो तो उसे भी इग्नोर करें। ऐसे में आप हर परिस्थिति में सुखी रहेंगे। इग्नोर यानी नजरअंदाज करना एक व्यवहारिक गुण है, जो हर मनुष्य में होता है। यह बात कंचनबाग स्थित दिगंबर जैन समवशरण मंदिर में चातुर्मास के लिए पधारे मुनि आदित्य सागर महाराज ने पत्रिका से विशेष चर्चा में कही। उन्होंने प्रमुख जैन तीर्थ सम्मेद शिखरजी को पर्यटन क्षेत्र घोषित किए जाने का विरोध करते हुए देशव्यापी अभियान का भी आह्वान किया है।
पेश है मुनि से चर्चा के मुख्य अंश…।
संत बनने से पहले भी कभी इंदौर आगमन हुआ था?
इसके पहले इंदौर एक बार व्यापार के लिए आया था। उसके बाद 2010 में ब्रह्मचारी अवस्था में आए थे। 2017 में गुरुदेव आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के साथ चातुर्मास के लिए आए थे। तब अध्ययन अधूरा रह गया था, जिसे अब यहां आकर फिर से पूरा कर रहा हूं।
उच्च शिक्षा के बाद अचानक दीक्षा लेने का विचार कैसे आया?
पत्थर भी एक चोट से टूट जाता है, लेकिन चोट सही होना चाहिए। वर्ष 2008 में गुरुदेव को पहली बार सुना तो चोट सही जगह लगी, फिर धीरे-धीरे विरक्ति का भाव आया। एक बार मन में आया कि अभी रुकते हैं, लेकिन लगा कि क्यों ना पुण्य का सदुपयोग करें। पुण्य को पुण्य में लगाएंगे तो भगवान बनेंगे।
धर्म की शिक्षा लेने के लिए कौन से सिद्धांत जरूरी होते हैं?
व्याकरण का ज्ञान होना बहुत जरूरी है, जिसे व्याकरण और सिद्धांत नहीं पता है, वह साहित्य की रचना नहीं कर सकता है। उसी तरह धर्म के मार्ग पर चलने के लिए भी व्याकरण होना जरूरी है। जब तक भाषा का ज्ञान नहीं होगा, तब तक आगे नहीं बढ़ सकते।
समाज को धर्म से जोड़ने के लिए आप क्या संदेश देते हैं?
मेरा मानना है कि बचपन से ही संस्कार देना बहुत जरूरी है। लोग धर्म से तो जुड़ रहे हैं, लेकिन धर्मात्मा नहीं बन रहे हैं। प्रयास होना चाहिए कि बच्चों से लेकर बड़ों तक में संस्कार की लहर हो।
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युवाओं को शिक्षा के साथ धर्म को कैसे अपनाना चाहिए?
युवाओं को गति के साथ मति का भी ध्यान रखना चाहिए। ध्यान और ज्ञान की प्राप्ति के लिए मति यानि बुद्धि की जरूरत होती है। आज के समय के युवा सिर्फ डिग्री के लिए भाग रहे हैं, लेकिन ज्ञान के लिए कोई नहीं भाग रहा। डिग्री के साथ बौद्धिक विकास भी जरूरी है। व्यक्ति का दृष्टिकोण ही उसे धार्मिक बनाता है। यदि व्यक्ति बुद्धि से काम करता है तो कभी समय का अभाव नहीं होगा। आयुर्वेद में कहा गया है कि जो सूर्य को उगते हुए देखता है, वह उतना ज्यादा जीएगा।
दैनिक दिनचर्या में खुद को धर्म से जोड़े रखने के क्या उपाय है?
दैनिक दिनचर्या में खुद को धर्म से जोड़ने के लिए कोई विशेष समय की नहीं, बल्कि भाव की आवश्यकता है। पांच मिनट का समय भी धर्म के लिए बहुत जरूरी है, जो धार्मिक होगा, वहीं स्वस्थ होगा और जो धार्मिक नहीं है, वह स्वस्थ जीवन नहीं जी पाएगा। भोजन पद्धति से लेकर दैनिक जीवनचर्या में इन सारी बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
सम्मेद शिखर तीर्थ के पयर्टन क्षेत्र बनाए जाने का विरोध क्यों कर रहे हैं?
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां पर किसी भी धर्म की धार्मिक विधि में किसी को भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जब जैन धर्मावलंबी किसी अन्य धर्म क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करते तो जैन धर्म के तीर्थ क्षेत्रों पर भी बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। यदि तीर्थ क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र बना दिया तो वहां की शुद्धता खत्म हो जाएगी। चाहे तो सम्मेद शिखर के अलावा अन्य क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र बना सकते हैं।
इसके निर्णय के विरोध में किस तरह का आंदोलन चलाया जाएगा?
कई संस्थाओं से आह्वान किया है कि अहिंसात्मक विरोध दर्ज किया जाएगा। जिस तरह पूर्व में संथारा के लिए भारत बंद का आह्वान किया गया था, उसी तरह इस बार फिर आह्वान किया जाएगा। जैन धर्म सिर्फ भारत का आर्थिक नहीं, बल्कि धार्मिक आधार भी है। प्रधानमंत्री समेत विभिन्न मुख्य पदों पर आसीन प्रमुख लोगों को ज्ञापन देंगे।