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89 साल में पीएचडी की डिग्री

कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ ने पीएचडी के लिए 89 वर्षीय दोडमनी मार्कंडेय यल्लप्पा के शोध प्रबंध शिवशरण डोहर कक्कय्या, एक अध्ययन को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने इस ढलती उम्र में 18 साल तक अध्ययन किया है।

हुबलीFeb 13, 2024 / 09:38 am

Zakir Pattankudi

89 साल में पीएचडी की डिग्री

प्रो. निंगप्पा मुदेनूर ने किया मार्गदर्शन
हुब्बल्ली. कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ ने पीएचडी के लिए 89 वर्षीय दोडमनी मार्कंडेय यल्लप्पा के शोध प्रबंध शिवशरण डोहर कक्कय्या, एक अध्ययन को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने इस ढलती उम्र में 18 साल तक अध्ययन किया है।
मार्कंडेय ने नवंबर 2006 में पीएचडी के लिए पंजीकरण कराया था परन्तु मार्गदर्शक रहे कर्नाटक कॉलेज के प्रोफेसर तलवार का निधन हो गया। बाद में, उन्होंने कर्नाटक विश्वविद्यालय के डॉ. आरसी हीरेमठ कन्नड़ अध्ययन विभाग के सहायक प्रोफेसर निंगप्पा एन. हल्ली (निंगप्पा मुदेनूर) के मार्गदर्शन में अपना शोध जारी रखा।
मार्कंडेय ने थीसिस तैयार कर पिछले साल 9 नवंबर को विश्वविद्यालय में जमा किया था। हालही में मौखिक परीक्षा हुई, 8 फरवरी को डिग्री के लिए स्वीकार किया गया।
अब तक 26 रचनाएं लिखी
दोडमनी मार्कंडेय ने बताया कि उन्होंने अपना करियर बेलगावी जिले के रामदुर्ग में एक प्राथमिक विद्यालय शिक्षक के तौर पर शुरू किया और बाद में धारवाड़ में तबादला हुआ। धारवाड़ में पीयूसी, बीए, एमए, बीएड की पढ़ाई की। डायट प्रशिक्षक के तौर पर काम किया और 1994 में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने अब तक 26 रचनाएं लिखी हैं। वे समगार हरलय्या अखबार का प्रबंधन कर रहे हैं।
सारी जानकारी इकट्टा की
मुझसे 36 साल बड़े मार्कंडेय का मार्गदर्शन करना एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। डोहर कक्कय्या के केवल छह छंद हैं। शरण आंदोलन में, कक्कय्या ने वचन साहित्य को संरक्षित किया है। मार्कंडेय ने फील्ड वर्क के लिए पूरे राज्य का दौरा कर सारी जानकारी इकट्टा की है।
प्रो. निंगप्पा मुदेनूर, मार्गदर्शक
प्रदेश के किसा भी अन्य विश्वविद्यालय में नहीं
दोडमनी मार्कंडेय की पीएचडी स्वीकृत हुई है। 89 साल की उम्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने वाला प्रदेश के किसा भी अन्य विश्वविद्यालय में नहीं है।
-प्रो. केबी गुडसी, कुलपति, कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़
विश्वविद्यालय का सहयोग प्राप्त हुआ
पीएचडी करने का लक्ष्य था। इसे 4 साल में पूरा करना था। कुछ जटिलताओं के कारण विलंब हुआ। अध्ययन कार्य पूर्ण करने के लिए विश्वविद्यालय का सहयोग प्राप्त हुआ।
दोडमनी मार्कंडेय, शोध छात्र

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