पानी की कमी एवं अकाल के चलते हुआ पलायन
राजस्थान मूल के हुब्बल्ली प्रवासी संदीप जैन ने कहा, हमारे पूर्वज 1888 में राजस्थान के घाणा से हुब्बल्ली आए थे। उस दौर में धुलाजी बैलगाड़ी पर सवार होकर राजस्थान से हुब्बल्ली पहुंचे। उन्होंने यहां कीचनवेयर एवं हाउसहोल्ड आइटम का व्यापार किया। आज उनकी सातवीं पीढ़ी हुब्बल्ली में निवास कर रही है। राजस्थान में उस दौर में पानी की भयंकर किल्लत थी। बार-बार अकाल पड़ता था। ऐसे में रोजगार के लिए राजस्थान से पलायन का सिलसिला शुरू हुआ। प्रवासी राजस्थानियों ने व्यवसाय के साथ ही सामाजिक सरोकारों के माध्यम से राजस्थान का नाम देश-विदेश में रोशन किया है। राजस्थानी समाज के लोंगों का कर्नाटक के विकास में दिए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। बात चाहे संस्कृति या रीति-रिवाज की हो या फिर समाजसेवा की। राजस्थानियों का कोई सानी नहीं है।
राजस्थान मूल के हुब्बल्ली प्रवासी संदीप जैन ने कहा, हमारे पूर्वज 1888 में राजस्थान के घाणा से हुब्बल्ली आए थे। उस दौर में धुलाजी बैलगाड़ी पर सवार होकर राजस्थान से हुब्बल्ली पहुंचे। उन्होंने यहां कीचनवेयर एवं हाउसहोल्ड आइटम का व्यापार किया। आज उनकी सातवीं पीढ़ी हुब्बल्ली में निवास कर रही है। राजस्थान में उस दौर में पानी की भयंकर किल्लत थी। बार-बार अकाल पड़ता था। ऐसे में रोजगार के लिए राजस्थान से पलायन का सिलसिला शुरू हुआ। प्रवासी राजस्थानियों ने व्यवसाय के साथ ही सामाजिक सरोकारों के माध्यम से राजस्थान का नाम देश-विदेश में रोशन किया है। राजस्थानी समाज के लोंगों का कर्नाटक के विकास में दिए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। बात चाहे संस्कृति या रीति-रिवाज की हो या फिर समाजसेवा की। राजस्थानियों का कोई सानी नहीं है।
व्यावसायिक कौशल के साथ निष्ठावान
राजस्थान के पाली जिले के राणावास निवासी 81 वर्षीय घीसूलाल कटारिया ने कहा, मेरे पिता हीराचन्द कटारिया वर्ष 1911 तथा बड़े पिता वनेचन्द कटारिया 1910 में हुब्बल्ली आए। मेरे पिता करीब दो वर्ष लक्ष्मेश्वर रहे और बाद में हुब्बल्ली शिफ्ट हो गए। उनके शुरू किए कपड़े के कारोबार को आज चौथी पीढ़ी संभाल रही है। राजस्थानी चाहे जन्मभूमि हो या फिर कर्मभूमि सदैव सेवा भावना को सर्वोपरि रखते हैं। राजस्थान के लोग जहां भी जाते हैं अपनी मेहनत व लगन से अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं। राजस्थानी लोग व्यावसायिक कौशल के साथ ही निष्ठावान है।
राजस्थान के पाली जिले के राणावास निवासी 81 वर्षीय घीसूलाल कटारिया ने कहा, मेरे पिता हीराचन्द कटारिया वर्ष 1911 तथा बड़े पिता वनेचन्द कटारिया 1910 में हुब्बल्ली आए। मेरे पिता करीब दो वर्ष लक्ष्मेश्वर रहे और बाद में हुब्बल्ली शिफ्ट हो गए। उनके शुरू किए कपड़े के कारोबार को आज चौथी पीढ़ी संभाल रही है। राजस्थानी चाहे जन्मभूमि हो या फिर कर्मभूमि सदैव सेवा भावना को सर्वोपरि रखते हैं। राजस्थान के लोग जहां भी जाते हैं अपनी मेहनत व लगन से अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं। राजस्थानी लोग व्यावसायिक कौशल के साथ ही निष्ठावान है।
पुरखोंं के इतिहास को नई पीढ़ी को बताएं
राजस्थान के जोधपुर मूल के सामाजिक कार्यकर्ता अभिषेक मेहता ने कहा, हमारे पूर्वज धुलाजी हुब्बल्ली आए थे। आज हमारे परिवार की सातवीं पीढ़ी हुब्बल्ली में निवास कर रही है। नई पीढ़ी को हमारे पुरखों के इतिहास के बारे में जरूर बताएं। प्रवासी राजस्थानी समय-समय पर विभिन्न सुविधाओं के लिए सहयोग देते रहे हैं। जहां-जहां प्रवासी राजस्थानी बसे, वहां आर्थिक तंत्र को मजबूती प्रदान की और बहुत कम समय में अपना स्थान बना लिया। प्रवासी राजस्थानियों को एक सूत्र में पिरोने एवं उनकी आवाज को बुलंद करने में कई संगठन सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। राजस्थान एवं अन्य राज्यों के बीच सेतु का काम कर रहे हैं। हम राजस्थान में जाकर भी लोगों के सहभागी बनते हैं। लोगों को रीति-रिवाज से जोडऩे के प्रयास लगातार होते रहते हैं। लोगों के सुख-दुख में भागीदार बनते हैं।
राजस्थान के जोधपुर मूल के सामाजिक कार्यकर्ता अभिषेक मेहता ने कहा, हमारे पूर्वज धुलाजी हुब्बल्ली आए थे। आज हमारे परिवार की सातवीं पीढ़ी हुब्बल्ली में निवास कर रही है। नई पीढ़ी को हमारे पुरखों के इतिहास के बारे में जरूर बताएं। प्रवासी राजस्थानी समय-समय पर विभिन्न सुविधाओं के लिए सहयोग देते रहे हैं। जहां-जहां प्रवासी राजस्थानी बसे, वहां आर्थिक तंत्र को मजबूती प्रदान की और बहुत कम समय में अपना स्थान बना लिया। प्रवासी राजस्थानियों को एक सूत्र में पिरोने एवं उनकी आवाज को बुलंद करने में कई संगठन सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। राजस्थान एवं अन्य राज्यों के बीच सेतु का काम कर रहे हैं। हम राजस्थान में जाकर भी लोगों के सहभागी बनते हैं। लोगों को रीति-रिवाज से जोडऩे के प्रयास लगातार होते रहते हैं। लोगों के सुख-दुख में भागीदार बनते हैं।
पांचवी पीढ़ी हुब्बल्ली में
बालोतरा जिले के रमणिया निवासी दिनेश श्रीश्रीमाल ने कहा, मेरे दादा करीब 110 साल पहले हुब्बल्ली आए। पहले किराणे का व्यापार एवं बाद में मेडिकल का व्यवसाय शुरू किया। अभी उनकी पांचवी पीढ़ी हुब्बल्ली में निवास कर रही है।
बालोतरा जिले के रमणिया निवासी दिनेश श्रीश्रीमाल ने कहा, मेरे दादा करीब 110 साल पहले हुब्बल्ली आए। पहले किराणे का व्यापार एवं बाद में मेडिकल का व्यवसाय शुरू किया। अभी उनकी पांचवी पीढ़ी हुब्बल्ली में निवास कर रही है।
संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं प्रवासी
पाली जिले के लुणावा निवासी राजू पोरवाल ने कहा, मेरे दादा फौजमल करीब 70 साल पहले हुब्बल्ली आए। मेरी पैदाइश हुब्बल्ली की है। राजस्थानी अपनी मेहनत एवं लगन से व्यवसाय की उंचाइयों पर पहुंचे है। दक्षिण में रहते हुए भी प्रवासी अपनी संस्कृति को जिंदा रखे हैं।
पाली जिले के लुणावा निवासी राजू पोरवाल ने कहा, मेरे दादा फौजमल करीब 70 साल पहले हुब्बल्ली आए। मेरी पैदाइश हुब्बल्ली की है। राजस्थानी अपनी मेहनत एवं लगन से व्यवसाय की उंचाइयों पर पहुंचे है। दक्षिण में रहते हुए भी प्रवासी अपनी संस्कृति को जिंदा रखे हैं।
आज भी जड़ों से जुड़े हुए
सिरोही जिले के आमलारी निवासी हीराचन्द जैन ने कहा, मेरे पिता शांतिलाल जैन 1946 में हुब्बल्ली आए। यहां टेलरिंग मेटेेरियल का बिजनेस शुरू किया। मेरा जन्म हुब्बल्ली में हुआ। हजारों किमी दूर रहकर भी राजस्थान के लोग अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं।
सिरोही जिले के आमलारी निवासी हीराचन्द जैन ने कहा, मेरे पिता शांतिलाल जैन 1946 में हुब्बल्ली आए। यहां टेलरिंग मेटेेरियल का बिजनेस शुरू किया। मेरा जन्म हुब्बल्ली में हुआ। हजारों किमी दूर रहकर भी राजस्थान के लोग अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं।
जन्मभूमि को नहीं भूलते
बालोतरा जिले के गोलिया चौधरियान निवासी जगदीश पटेल ने कहा, मैं 1978 में हुब्बल्ली आया। राजस्थान के लोग अपनी जन्मभूमि को कभी नहीं भूलते। कर्नाटक के साथ ही राजस्थान के विकास कार्य में प्रवासियों का योगदान सराहनीय रहा है।
बालोतरा जिले के गोलिया चौधरियान निवासी जगदीश पटेल ने कहा, मैं 1978 में हुब्बल्ली आया। राजस्थान के लोग अपनी जन्मभूमि को कभी नहीं भूलते। कर्नाटक के साथ ही राजस्थान के विकास कार्य में प्रवासियों का योगदान सराहनीय रहा है।