कल्लोलिकर ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर 2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीति में प्रवेश किया। कांग्रेस ने टिकट का आश्वासन दिया था, लेकिन अंतिम समय में उन्हें इनकार कर दिया गया। उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा उम्मीदवार से महज तीन हजार वोटों से हार गए। कल्लोलिकर का मानना है कि उनके टिकट काटने में सतीश जारकीहोली का हाथ था। माना जा रहा है कि कल्लोलिकर को मिले वोटों का सीधा असर कांग्रेस की जीत की संभावनाओं पर पड़ेगा। जोले जीत हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और हिंदुत्व पर काफी भरोसा कर रहे हैं। जोले और शशिकला हाल के वर्षों में हिंदुत्व के प्रमुख पैरोकार बन गए हैं। 2022 में उन्होंने हिंदुत्व के खिलाफ जारकीहोली के विवादास्पद शब्दों की आलोचना करने के लिए यमकनमराडी विधानसभा क्षेत्र में नानू हिंदू नामक एक कार्यक्रम आयोजन किया।
लिंगायत समुदाय के सदस्य के रूप में जोले निर्वाचन क्षेत्र में 4.8 लाख लिंगायतों के वोट हासिल करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, जोले परिवार श्री बीरेश्वर सहकारी क्रेडिट सोसायटी चलाता है, जिसकी कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा में 210 से अधिक शाखाएं हैं। इनमें से अधिकांश शाखाएं चिक्कोडी लोकसभा क्षेत्र में स्थित हैं, जिससे जोले के लिए मतदाताओं से जुडऩा आसान हो गया है। हालांकि, जोले के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना है। बहुत से लोग शिकायत करते हैं कि वह आसानी से उपलब्ध नहीं है। जोले के लिए एक और महत्वपूर्ण चुनौती उनके अभियानों में प्रमुख स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों की अनुपस्थिति है। खासकर प्रभाकर कोरे, रमेश कट्टी और महंतेश कवतगीमठ जैसे पदाधिकारियों की अनुपस्थिति है। कट्टी चिक्कोडी में भाजपा के टिकट के प्रबल दावेदार थे, जबकि कोरे अपने बेटे अमित के लिए टिकट हासिल करने की उम्मीद कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि जोले ने उन्हें अपने अभियान का समर्थन करने के लिए मनाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए हैं।