उप प्रवर्तक: सुविधा बढ़ी लेकिन सुरक्षा घटी। मोबाइल समय खराब करने का माध्यम बन रहा है। पहले जब लैण्डलाइन फोन हुआ करते थे तब परिवार में आपस में प्रेमभाव की भावना अधिक दिखती थी। मोबाइल के दौर में परिवार टूट रहे हैं। मोबाइल पर समय अधिक व्यतीत होने से शरीर कमजोर हो रहा है। मोबाइल ने परिवार के साथ संवाद बन्द कर दिया है। हमारे सोचने-विचारने की शक्ति क्षीण हुई है। मोबाइल देखने की एक नियमित दिनचर्या निश्चित की जानी चाहिए।
उप प्रवर्तक: परिवार के बिखराव का कारण अहम (ईगो) है। यदि हम अहम को छोड़ दें तो परिवार से जुड़ सकते हैं और रिश्ते बचे रह सकते हैं।
उप प्रवर्तक: विवाह के लिए हमारे यहां बरसों से व्यवस्था बनी हुई है लेकिन जिस तरह से अंतररजातीय विवाह होने लगे हैं इसकी एक वजह संस्कार एवं संस्कृति का कमजोर होना भी है। अधिकांश प्रेम विवाह भी अक्सर कुछ समय बाद टूट जाते हैं।
उप प्रवर्तक: हम कठिन श्रम नहीं कर रहे। ऐसे में हमारी सहनशक्ति भी कम हो गई है। आरामपसंद जिंदगी जीना चाहते हैं। सुविधा बढ़ी है लेकिन शरीर क्षीण हो गया है।
उप प्रवर्तक: संस्कार मां के गर्भ से शुरू हो जाता है। यानी बच्चे के जन्म लेने से पहले ही उसमें संस्कार का बीज पैदा होने लग जाता है। गर्भावस्था के दौरान मां जिस तरह रहती है उसका असर संतान पर निश्चित ही दिखाई देता है। नौ महीने तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
उप प्रवर्तक: बच्चों को संस्कार देने एवं उनका पालन-पोषण करने की जिम्मेदारी वाले माता-पिता भी बच्चों को समय नहीं दे रहे हैं। ऐसे में वह दिन दूर नहीं होगा जब रोबोट से ही सब कुछ नियंत्रण होगा। बच्चों का पालन-पोषण एवं संस्कार देने का काम भी रोबोट ही करने लगेंगे।
उप प्रवर्तक: हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी होने चाहिए जिसमें महाराणा प्रताप, महावीर स्वामी, विवेकानन्द की जीवनी को पढ़ाया जाएं। उनके तप, त्याग, तपस्या को बताया जाएं। शिक्षा प्रणाली में बदलाव करने की आवश्यकता है।
उप प्रवर्तक: निश्चित ही दिखावा बढ़ा है। यही अशांति एवं दुख का कारण भी है। आज हर चीज किश्तों में उपलब्ध है। मनुष्य की इच्छाएं कम नहीं हो रही हैं। हमें लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघना चाहिए। श्रावक के जो नियम बताए गए हैं उसका पालन किया जाना चाहिए।
उप प्रवर्तक: किशोर वर्ग एवं युवाओं के लिए अलग कक्षाओं का संचालन किया जाता है। समय-समय पर शिविर लगाए जाते हैं। इससे युवा वर्ग का झुकाव धर्म के प्रति बढ़ रहा है।
उप प्रवर्तक: संतों के संपर्क में आने से बहुत फर्क पड़ता है। यही वजह है कि दीक्षाएं भी अधिक होने लगी हैं। सवाल: कई धर्मगुरु राजनीति में आ रहे हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
उप प्रवर्तक: जब धर्म में राजनीति आती है तो धर्म अशुद्ध हो जाता है लेकिन जब राजनीति में धर्म चला जाएं तो राजनीति भी शुद्ध हो जाती है। राजनीति के ऊपर धर्मगुरुओं का अंकुश होता है। राजनीतिक लोग धर्मगुरुओं पर हावी हो गए।
उप प्रवर्तक: तिरुपति में प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले लड्डू में पशुओं की चरबी मिलाए जाने की घटना निश्चित ही आस्था के साथ खिलवाड़ हैं। यह करोड़ो-अरबों भक्तों की आस्था से जुड़ा सवाल है। इसमें लिप्त लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाना चाहिए।