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Jagannath Stotram: कष्ट नहीं छोड़ रहे पीछा तो पढ़ें यह भगवान जगन्नाथ स्तोत्र, पाठ का यह है नियम

Jagannath Stotram: भगवान जगन्नाथ स्त्रोत पाठ भक्त को हर कष्ट से मुक्ति दिलाता है, हालांकि जगन्नाथ स्तोत्र पाठ की विधि भी जानना चाहिए ( Shri Jagannath prarthana)।

भोपालJul 07, 2024 / 03:55 pm

Pravin Pandey

भगवान जगन्नाथ स्त्रोत पाठ

7 जुलाई से पुरी के भगवान श्री जगन्नाथ की रथयात्रा का उत्सव शुरू हो रहा है यह आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी शुक्रवार 19 जुलाई को भगवान फिर मुख्य मंदिर लौटेंगे, इसके बाद यात्रा संपन्न होगी। इस रथयात्रा के दौरान ओडिशा के पुरी में भगवान के मुख्य मंदिर से श्री जगन्नाथ जी अपने भक्तों का हाल चाल जानने के लिए बाहर निकलते हैं और सभी भक्त दर्शन कर अपने दुखों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं । मान्यता है कि 12 दिनों तक जो भी भक्त भगवान के इस श्री जगन्नाथ स्तोत्र का रोज पाठ करते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सभी कष्ट भी कट जाते हैं।

श्री जगन्नाथ स्तोत्र पाठ विधि (jagannath stotram path vidhi)

1. सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण, श्री बलराम और सुभद्रा जी की पंचोपचार पूजा जल, अक्षत-पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से करें। इसके बाद हाथ जोड़कर प्रभु का ध्यान करें ।
2. पूजन के बाद स्त्रोत के पहले दो श्लोक पढ़कर योगेश्वर श्री कृष्ण, श्री बलराम, और देवी सुभद्रा को प्रणाम करें ।
3. पूजन और नमन करने के बाद किसी धुले हुए आसन पर बैठकर भगवान श्री जगन्नाथ जी के इस स्त्रोत का शांत चित्त होकर धीमे स्वर में पाठ करें ।
4- जब तक पाठ चलता रहे तब तक गाय के घी का दीपक भी जलता रहे ।
5- ऐसा कहा जाता कि इस स्त्रोत का सिर्फ एक बार पाठ करने से मानसिक शांति मिलने के साथ अनेक कष्टों का निवारण श्री भगवान जी की कृपा से हो जाता है ।

श्री जगन्नाथ स्तोत्र (Jagannath Stotram)

अथ श्री जगन्नाथप्रणामः
नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने ।
बलभद्रसुभद्राभ्यां जगन्नाथाय ते नमः ।।1।।
जगदानन्दकन्दाय प्रणतार्तहराय च ।
नीलाचलनिवासाय जगन्नाथाय ते नमः ।।2।।

।। श्री जगन्नाथ प्रार्थना (Shri Jagannath prarthana)।।

रत्नाकरस्तव गृहं गृहिणी च पद्मा
किं देयमस्ति भवते पुरुषोत्तमाय ।
अभीर, वामनयनाहृतमानसाय
दत्तं मनो यदुपते त्वरितं गृहाण ।।1।।
भक्तानामभयप्रदो यदि भवेत् किन्तद्विचित्रं प्रभो
कीटोऽपि स्वजनस्य रक्षणविधावेकान्तमुद्वेजितः ।
ये युष्मच्चरणारविन्दविमुखा स्वप्नेऽपि नालोचका-
स्तेषामुद्धरण-क्षमो यदि भवेत् कारुण्यसिन्धुस्तदा ।।2।।
अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः ।
यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो ।।3।।
या त्वरा द्रौपदीत्राणे या त्वरा गजमोक्षणे ।
मय्यार्ते करुणामूर्ते सा त्वरा क्व गता हरे ।।4।।
मत्समो पातकी नास्ति त्वत्समो नास्ति पापहा ।
इति विज्ञाय देवेश यथायोग्यं तथा कुरु ।।5।।
इस प्रार्थना के समाप्त होने पर श्री भगवान के चरणों में पुष्पाजंलि अर्पित करें ।

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