हाल ही में एक वरिष्ठ पत्रकार की कार्यालय के बाहर दिल का दौरा (Heart attack) पड़ने से मृत्यु हो गई। खबरों के अनुसार, घटना से कुछ घंटे पहले कार्यस्थल पर उन्हें “शर्मिंदा” किया गया था।
एक अन्य दुखद मामले में, मुंबई में मैकिन्से एंड कंपनी में काम करने वाले 25 वर्षीय व्यक्ति ने काम के दबाव को संभाल न पाने के कारण कथित तौर पर अपनी इमारत की नौवीं मंजिल से कूदकर जान दे दी। ऐसे और भी कई नामों की सूची लंबी हो सकती है।
डॉ राजीव मेहता, सर गंगा राम अस्पताल में मनोरोग विभाग के अध्यक्ष ने आईएएनएस को बताया कि काम का बोझ, कार्यस्थल पर पारस्परिक संबंध, समय सीमा, लंबे समय तक काम करना और यात्रा करना, सभी कार्यस्थल पर तनाव (Workplace stress) को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
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हालांकि, इसके परिणाम गंभीर होते हैं, जिनमें शामिल हैं: “बर्नआउट और अवसाद, धूम्रपान और शराब की लत लग जाना। घर में पारस्परिक संबंध खराब हो जाते हैं। साथ ही मधुमेह, उच्च रक्तचाप, पीठ दर्द आदि जैसे रोग जल्दी सामने आने का खतरा भी रहता है।”
तो समाधान क्या हो सकते हैं: डॉ राजीव ने “कार्यस्थल संबंधों में मुखर होने और सीमा निर्धारित करने” पर बल दिया। “नहीं” कहना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना काम के लिए “हां” कहना।
एक काउंसलिंग मनोवैज्ञानिक ने कहा, कार्यालय में रहते हुए, अपने काम के घंटों के बीच 15-20 मिनट का एक चक्कर लगाएं ताकि शरीर में हलचल हो और डेस्क और ऑफिस के लोगों से दूर तनाव कम हो ।
विशेषज्ञों ने कार्यालय प्रबंधन और सहकर्मियों की कर्मचारियों को तनावमुक्त रहने में मदद करने की भूमिका पर भी बल दिया। डॉ राजीव ने कहा, “प्रबंधन को कर्मचारियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए और उनकी सीमाओं को जानना चाहिए, न कि उन्हें अत्यधिक काम का बोझ डालना चाहिए।”
सभी पेशेवरों को काम की जिम्मेदारियों को कार्यस्थल पर सहकर्मियों और घर पर परिवार के सदस्यों के साथ साझा करना चाहिए, जिससे उन्हें न केवल जवाबदेह बने रहने में मदद मिलेगी बल्कि उनके जीवन और हाथ में लिए कार्यों के बारे में हल्का महसूस होगा।
विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया कि “कार्य-जीवन संतुलन: नियमित योग / व्यायाम, संतुलित भोजन, परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना, पर्याप्त नींद, हाइड्रेशन और नियमित ब्रेक और छुट्टियां। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से समय पर मदद लेने” का भी आह्वान किया।