अजीब बात ये है कि डॉक्टर बहुत कम ही ओआरएस देते हैं, जबकि ये बहुत सस्ता है और विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इसे सालों से सुझाता रहा है। हाल ही में हुए एक शोध में पता चला है कि डॉक्टर ओआरएस कम क्यों देते हैं।
शोध से पता चला कि डॉक्टर कम ओआरएस देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि मरीज दवाइयां ही चाहते हैं। उन्हें नहीं लगता कि मरीज ओआरएस लेना पसंद करेंगे। पर असल में ज्यादातर मरीज ओआरएस लेने को तैयार हैं। डॉक्टरों की इस गलतफहमी की वजह से हर साल लाखों बच्चों की जान जा रही है।
शोध कैसे हुआ?
शोधकर्ताओं ने भारत के दो राज्यों, कर्नाटक और बिहार में 2,000 से ज्यादा डॉक्टरों से बात की। उन्होंने ऐसे लोगों को भी तैयार किया जो मरीज बनकर डॉक्टरों के पास गए। ये “मरीज” अपने 2 साल के बच्चे के लिए इलाज मांगते थे, पर असल में बच्चे वहां नहीं थे।
शोधकर्ताओं ने भारत के दो राज्यों, कर्नाटक और बिहार में 2,000 से ज्यादा डॉक्टरों से बात की। उन्होंने ऐसे लोगों को भी तैयार किया जो मरीज बनकर डॉक्टरों के पास गए। ये “मरीज” अपने 2 साल के बच्चे के लिए इलाज मांगते थे, पर असल में बच्चे वहां नहीं थे।
क्या पता चला?
शोध में पता चला कि डॉक्टरों की गलतफहमी ही ओआरएस कम दिए जाने का सबसे बड़ा कारण है। 42% मामलों में यही वजह थी। दवाओं की कमी या पैसे के लालच का असर बहुत कम था।
शोध में पता चला कि डॉक्टरों की गलतफहमी ही ओआरएस कम दिए जाने का सबसे बड़ा कारण है। 42% मामलों में यही वजह थी। दवाओं की कमी या पैसे के लालच का असर बहुत कम था।
समाधान क्या है?
इस शोध से पता चलता है कि अगर मरीज डॉक्टरों से सीधे ओआरएस मांगें और डॉक्टरों को बताया जाए कि मरीज ओआरएस लेना चाहते हैं, तो ओआरएस का इस्तेमाल बहुत बढ़ सकता है। इससे बच्चों की जानें बचाई जा सकती हैं और बेवजह एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल भी कम हो सकता है।
इस शोध से पता चलता है कि अगर मरीज डॉक्टरों से सीधे ओआरएस मांगें और डॉक्टरों को बताया जाए कि मरीज ओआरएस लेना चाहते हैं, तो ओआरएस का इस्तेमाल बहुत बढ़ सकता है। इससे बच्चों की जानें बचाई जा सकती हैं और बेवजह एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल भी कम हो सकता है।