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भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज, कोलकाता में प्रो. माणिक प्रधान और उनकी शोध टीम द्वारा पैटर्न-मान्यता आधारित क्लस्टरिंग दृष्टिकोण का उपयोग किया गया था। यह दृष्टिकोण पेप्टिक अल्सर और अन्य गैस्ट्रिक स्थितियों (gastric disorders) की सांस को स्वस्थ व्यक्तियों से चुनिंदा रूप से अलग कर सकता है। टीम ने मशीन लर्निंग (एमएल) प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया ताकि सांस के विश्लेषण से उत्पन्न बड़े जटिल ब्रीथोमिक्स डेटा सेट से सही जानकारी निकाली जा सके।
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निष्कर्ष मास स्पेक्ट्रोस्कोपी के यूरोपीय जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। अध्ययन ने अद्वितीय सांस पैटर्न, श्वासग्राम और सांस के निशान पैटर्न को पहचानने के लिए क्लस्टरिंग दृष्टिकोण को लागू किया। वैज्ञानिकों ने पायरो-ब्रीथ नामक एक प्रोटोटाइप डिवाइस भी विकसित किया। विचार के पीछे मौलिक अवधारणा इस तथ्य पर आधारित थी कि विभिन्न जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं और विभिन्न गैस्ट्रिक फेनोटाइप के रोगजनन से जुड़े इंट्रासेल्युलर / बाह्य प्रक्रियाओं द्वारा अंतर्जात रूप से उत्पादित यौगिकों का समग्र प्रभाव सांस के निशान के विशिष्ट द्रव्यमान में परिलक्षित होता है। इसलिए, विधि पेप्टिक अल्सर के निदान और वर्गीकरण के लिए साँस छोड़ते हुए आणविक प्रजातियों की पहचान करती है।
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वर्तमान में पेप्टिक अल्सर रोग (peptic ulcer disease) एक महत्वपूर्ण चिकित्सा-सामाजिक समस्या है जो हेलिकोबैक्टर पाइलोरी जीवाणु संक्रमण के कारण होता है। पारंपरिक दर्दनाक और आक्रामक एंडोस्कोपिक (endoscopic) प्रक्रियाएं इस विकार के समय पर निदान और जांच के लिए इसे जटिल बनाती हैं।
इसके अलावा पारंपरिक एंडोस्कोपिक (endoscopic) पद्धति सामान्य आबादी की स्क्रीनिंग के लिए उपयुक्त नहीं है। यही कारण है कि जटिल गैस्ट्रिक फेनोटाइप वाले कई आम लोगों का पता नहीं चल पाता है।
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