ग्रामीण क्षेत्र में प्रभाव अधिक भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) पेयजल में नाइट्रेट और फ्लोराइड सांद्रता सीमा क्रमश: 45 मिलीग्राम/लीटर और 1.5 मिलीग्राम/लीटर निर्धारित करता है। चिक्कबल्लापुर शहरी क्षेत्र में, 2.43 फीसदी पानी के नमूनों में फ्लोराइड सांद्रता निर्धारित सीमा से अधिक पाई गई। ग्रामीण क्षेत्र में यह प्रभाव काफी अधिक था। 15.17 फीसदी नमूनों में फ्लोराइड सांद्रता निर्धारित सीमा से अधिक थे।शहरी क्षेत्रों में नाइट्रेट सांद्रता 24.8 मिलीग्राम/लीटर (8-41 मिलीग्राम/लीटर की सीमा) थी। ग्रामीण क्षेत्रों में, औसत नाइट्रेट सांद्रता 27.35 मिलीग्राम/लीटर पर अधिक थी। इसका मान 0.8 मिलीग्राम/लीटर से लेकर 252 मिलीग्राम/लीटर तक था।
ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों और महिलाओं ने क्रमश: 0.157 से 6.506 और 0.185 से 7.689 तक कुल जोखिम सूचकांक (टीएचआइ) मानों की रिपोर्ट की जबकि बच्चों ने 0.212 से 8.796 तक मान की सूचना दी।
कैल्शियम की कमी और स्केलेटल फ्लोरोसिस आइआइएचएस में एसोसिएट-प्रैक्टिस और संबंधित लेखक किरण डी. ए. ने बताया कि फ्लोराइड के उच्च स्तर के सेवन से कैल्शियम की कमी और स्केलेटल फ्लोरोसिस का खतरा है। हड्डियां काफी कमजोर हो जाती हैं। नाइट्रेट युक्त पानी का लगातार सेवन शिशुओं में ब्लू बेबी सिंड्रोम जैसी गंभीर समस्याओं और वयस्कों में पेट के कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है।उन्होंने कहा कि कृषि उर्वरकों का रिसाव, सेप्टिक टैंक लीक और कार्बनिक पदार्थ का निर्वहन नाइट्रेट संदूषण में योगदान देता है जबकि पानी में फ्लोराइड प्राकृतिक प्रक्रियाओं और कोयला जलाने जैसी मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होता है।
हस्तक्षेप की जरूरत वरिष्ठ जलविज्ञानी शशांक पलुर ने कहा कि भूवैज्ञानिक स्थितियों के बावजूद, रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) संयंत्रों के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर विखनिजीकरण आवश्यक है। आरओ की लागत आती है। धन और पानी की बर्बादी दोनों के मामले में ठोस नीति-स्तरीय हस्तक्षेपों की जरूरत है।