क्या पाया शोधकर्ताओं ने
वरमोंट विश्वविद्यालय (WERMONT UNIVERSITY) में प्रोफेसर और लर्मर कॉलेज ऑफ मेडिसिन की हेमटोलॉजिस्ट मैरी कुशमैन ने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला है कि ए ब्लड ग्रुप वाले लोगों में कोविड-19 होने का 45 प्रतिशत अधिक जोखिम होता है। शोधकर्ता ने स्पेन और इटली के 1900 संक्रमित लोगों का अध्ययन किया था जो संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार थे और नतीजों की तुलना २ हजार स्वस्थ लोगों से की। मैरी का कहना है कि इन परिणामों का उपयोग सभी मामलों में नहीं किया जा सकता लेकिन ये कोरोना संक्रमण में रक्त से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण बातों की ओर हमारा ध्यानाकर्षित करता है। कुशमैन ने बताया कि अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 2173 लोगों के ब्लड टाइप को को देखा जिन्हें कोविड-19का संक्रमण था। उनकी तुलना उस क्षेत्र की सामान्य आबादी के ब्लड टाइप से की गई थी। उन्होंने पाया कि सामान्य आबादी में टाइप ए 31 प्रतिशत, टाइप बी 24 प्रतिशत, टाइप एबी 9 प्रतिशत और टाइप ओ 34 प्रतिशत था। वायरस वाले लोगों में टाइप ए 38 प्रतिशत, टाइप बी 26 प्रतिशत, टाइप एबी 10 प्रतिशत और टाइप ओ 25 प्रतिशत था। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि ब्लड टाइप ए में गैर-ए ब्लड टाइपं की तुलना में सीओवीआईडी-19 के लिए काफी अधिक जोखिम था। जबकि गैर-ए ब्लड ग्रुप की तुलना में रक्त समूह में संक्रामक बीमारी के लिए बहुत कम जोखिम था।
वरमोंट विश्वविद्यालय (WERMONT UNIVERSITY) में प्रोफेसर और लर्मर कॉलेज ऑफ मेडिसिन की हेमटोलॉजिस्ट मैरी कुशमैन ने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला है कि ए ब्लड ग्रुप वाले लोगों में कोविड-19 होने का 45 प्रतिशत अधिक जोखिम होता है। शोधकर्ता ने स्पेन और इटली के 1900 संक्रमित लोगों का अध्ययन किया था जो संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार थे और नतीजों की तुलना २ हजार स्वस्थ लोगों से की। मैरी का कहना है कि इन परिणामों का उपयोग सभी मामलों में नहीं किया जा सकता लेकिन ये कोरोना संक्रमण में रक्त से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण बातों की ओर हमारा ध्यानाकर्षित करता है। कुशमैन ने बताया कि अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 2173 लोगों के ब्लड टाइप को को देखा जिन्हें कोविड-19का संक्रमण था। उनकी तुलना उस क्षेत्र की सामान्य आबादी के ब्लड टाइप से की गई थी। उन्होंने पाया कि सामान्य आबादी में टाइप ए 31 प्रतिशत, टाइप बी 24 प्रतिशत, टाइप एबी 9 प्रतिशत और टाइप ओ 34 प्रतिशत था। वायरस वाले लोगों में टाइप ए 38 प्रतिशत, टाइप बी 26 प्रतिशत, टाइप एबी 10 प्रतिशत और टाइप ओ 25 प्रतिशत था। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि ब्लड टाइप ए में गैर-ए ब्लड टाइपं की तुलना में सीओवीआईडी-19 के लिए काफी अधिक जोखिम था। जबकि गैर-ए ब्लड ग्रुप की तुलना में रक्त समूह में संक्रामक बीमारी के लिए बहुत कम जोखिम था।
ब्लड ग्रुप से जुड़ी होती हैं बीमारियां
विशेषज्ञों का कहना है कि शोध से पता चलता है कि कई बीमारियां ब्लड टाइप से जुड़ी हुई हैं। हमने पाया कि एबी स्ट्रोक का जोखिम और कॉग्निटिव हानि से संबंधित है। टााइप ओ, अन्य प्रकारों की तुलना में, दिल के दौरे और रक्त के थक्कों से भी बचाता है। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं ने आंतों की बीमारियों जैसे नोरोवायरस और रक्त प्रकार के बीच भी संबंध पाया। नोरोवायरस का स्पष्ट जैविक कारण है कि यह वायरस ब्लड टाइप में अंतर करने के लिए वास्तव में कोशिका की सतह पर शुगर का उपयोग सेल में खुद को जोडऩेक के लिए करता है। वहीं सामान्य तौर पर जिन लोगों के खून में एच 1-एंटीजन नहीं बनते हैं और उनका ब्लड टाइप बी होता है वे लोग वायरस के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। जबकि ए, एबी या ओ ब्लड ग्रुप के लोगों के बीमार होने का जोखिम ज्यादा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि शोध से पता चलता है कि कई बीमारियां ब्लड टाइप से जुड़ी हुई हैं। हमने पाया कि एबी स्ट्रोक का जोखिम और कॉग्निटिव हानि से संबंधित है। टााइप ओ, अन्य प्रकारों की तुलना में, दिल के दौरे और रक्त के थक्कों से भी बचाता है। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं ने आंतों की बीमारियों जैसे नोरोवायरस और रक्त प्रकार के बीच भी संबंध पाया। नोरोवायरस का स्पष्ट जैविक कारण है कि यह वायरस ब्लड टाइप में अंतर करने के लिए वास्तव में कोशिका की सतह पर शुगर का उपयोग सेल में खुद को जोडऩेक के लिए करता है। वहीं सामान्य तौर पर जिन लोगों के खून में एच 1-एंटीजन नहीं बनते हैं और उनका ब्लड टाइप बी होता है वे लोग वायरस के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। जबकि ए, एबी या ओ ब्लड ग्रुप के लोगों के बीमार होने का जोखिम ज्यादा है।