हर साल मार्च महीने में विश्व ग्लूकोमा (Glaucoma) सप्ताह मनाया जाता है। इसका मकसद लोगों में इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना और जल्दी पता लगाकर इसका इलाज करना है।
अस्पतालों के अनुसार कई रिपोर्ट्स और अध्ययनों से पता चलता है कि ग्लूकोमा की वजह से होने वाला अंधापन भारत में तेजी से बढ़ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि लोगों में जागरूकता की कमी होती है और बीमारी का पता देर से चल पाता है। भारत में लगभग 90 प्रतिशत मामलों में इसका पता ही नहीं चल पाता है।
यह भी पढ़ें-40 से ऊपर उम्र वालों को यह जांच कराना बेहद जरूरी दिल्ली के वीनू आई हॉस्पिटल के वरिष्ठ डॉक्टर अभिषेक बी डागर का कहना है कि ग्लूकोमा (Glaucoma) को “साइलेंट थीफ” भी कहा जाता है। यह उसी तरह से है जैसे आजकल लाइफस्टाइल से जुड़ी हुई बीमारियां बढ़ रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि आंखों की दूसरी बीमारियों के उलट ग्लूकोमा (Glaucoma) का पता देर से चलता है और जब तक पता चलता है तब तक आंखों की रोशनी कमजोर हो चुकी होती है और इसे वापस नहीं पाया जा सकता है।
ग्लूकोमा (Glaucoma) में आंखों के अंदर का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। इससे आंखों की नस को नुकसान पहुंचता है। यही नस दिमाग तक देखने की सूचना पहुंचाती है। अगर इसका इलाज ना कराया जाए तो मोतियाबिंद (Cataract) हो सकता है और आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जा सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में ग्लूकोमा (Glaucoma) ही अंधापन का सबसे बड़ा कारण है। डॉक्टर अभिषेक ने बताया कि भारत में 40 साल से ऊपर के करीब 1 करोड़ 12 लाख लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं। यह भारत में अंधापन का तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
यह भी पढ़ें-Diabetes Cause of Blindness: बढ़ता हुआ Blood Sugar आपको बना सकता है अंधा दिल्ली के Dr Shroff’s Charity Eye Hospital की ग्लूकोमा (Glaucoma) सेवाओं की निदेशक डॉ सुनीता दुबे का कहना है कि ग्लूकोमा को आम तौर पर उम्रदराज से जोड़ा जाता है लेकिन यह युवाओं को भी हो सकता है। युवाओं में आंखों में सूजन की समस्या ज्यादा होती है। यह बीमारी वंशानुगत भी हो सकती है या फिर आंखों में सूजन, स्टेरॉयड के इस्तेमाल या चोट लगने से भी हो सकती है।
डॉक्टरों का कहना है कि आंखों की नियमित जांच बहुत जरूरी है। अगर बीमारी का पता जल्दी चल जाए तो इसका इलाज किया जा सकता है और इसे और बढ़ने से रोका जा सकता है।