हापुड़

गंगा यात्रा सीरीज : गढ़मुक्तेश्वर में लॉकडाउन ने बदला गंगा जल का रंग, मछलियों संग डॉल्फिन ने दिखाएं नजारे

गढमुक्तेश्वर में विश्राम घाट, गऊघाट और ध्रुव घाट हुए साफ लॉकडाउन से पहले घाटों पर लगा रहता था गंदगी का ढेरगंगा के पास से होकर गुजरने वाली फैक्ट्रियां हैं बंद

हापुड़May 03, 2020 / 03:09 pm

Mahendra Pratap

गंगा यात्रा सीरीज : गढ़मुक्तेश्वर में लॉकडाउन ने बदला गंगा जल का रंग, मछलियों संग डॉल्फिन ने दिखाएं नजारे

लाकडाउन के बाद गंगा का पानी निर्मल हुआ, गंगा मैली नहीं अब स्वच्छ जल वाली नजर आ रही है। लुप्त हुए जलचरों की प्रजातियां भी इस समय नजर आने लगी है। अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से निकल कर गंगा कैसे अपने अंतिम गंगासागर में मिलती है। इस बीच जहां-जहां से यह गुजरती है उन शहरों में गंगा का आज क्या हाल है। हम इस बारे में जानेंगे, इस गंगा यात्रा सीरीज में-
पेश है आज गंगा यात्रा की दूसरी रिपोर्ट:- गढ़मुक्तेश्वर से शक्ति सिसौदिया की रिपोर्ट

हापुड़. सिर्फ नौ साल पहले उत्तर प्रदेश के मानचित्र में जिले के रुप में आए हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में गंगा नदी पूरी इठला कर बहती हैं। बड़ा सा किनारा है। हरिद्वार के उत्तराखंड में चले जाने के बाद यूपी के लोगों को हर की पौड़ी की याद सताती थी, इस दर्द को महसूस कर यूपी सरकार ने गढ़मुक्तेश्वर को हर की पौड़ी की तरह विकसित करने की पूरी कोशिश की है। लॉकडाउन से पहले गंगा की हालात यह थी कि लोग तट पर खड़े होकर हाथ जोड़ लेते थे। और जो बहुत श्रद्धालु होते वह किनारे पर जाकर अपने उपर जल छिड़क कर नहाया हुआ समझते थे। पर आज लॉकडाउन के 35 दिन गुजर गए हैं। कल कल बहती गंगा का शोर, उसका साफ पानी और उसमें कभी-कभार इठलाती डॉल्फिनें अब जनता को अपनी तरफ आकर्षित करती है, और शायद यह कहती है कि मैं अब तुम्हारी पुरानी गंगा मैय्या हूं। श्रद्धालु और जनता सब बेहद खुश है। लोगों का कहना है कोरोना वायरस दर्द तो बहुत दे रहा है पर लॉकडाउन ने हमारी गंगा को पवित्र और पावन कर दिया।
ऐसे पड़ा नाम :- इसका प्राचीन नाम शिववल्‍लभपुर था। कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव के गणों की मुक्ति हुई थी, इसी वजह से इस स्‍थान का नाम गढ़मुक्‍तेश्‍वर पड़ा। गढ़मुक्‍तेश्‍वर में गंगा मन्दिर, नक्‍का कुआं, जामा मस्जिद, मीरा बाई की रेती आदि कई दर्शनीय स्‍थल है। वैसे तो यह हापुड़ जिले के अंतगर्त आता है। यह जिला हापुड़ स्टेनलेस स्टील पाइप, पेपर शंकु और ट्यूबों के लिए भी प्रसिद्ध है। नई दिल्ली से लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित है।
खुशी से झूमते लोग :- गढ़मुक्तेश्वर में गंगा की धारा पहले के मुकाबले अब ज्यादा साफ नजर आ रही है। इसे देख कर घाट के किनारे रहने वाले लोग बहुत खुश हैं। गंगा घाटों पर भी सफाई बनी हुई है। फूल, प्रसाद, गंगाजली आदि की दुकानें बंद होने से केवल गंगा की कल-कल करती धारा की ध्वनि ही सुनाई देती है। लॉकडाउन से गढ़मुक्तेश्वर की गंगा का जल निर्मल और शुद्ध हो गया है। साफ निर्मल पानी देख लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं है।
अब आचमन कर रहे लोग :- लॉकडाउन में गढ़ गंगा का अचंभित करने वाला नजारा देखने को मिल रहा है। गंगा का जल पूरी तरह से निर्मल और शुद्ध हो चुका है। जहां इसका जल आचमन करने योग्य नहीं था, वहां लोग इस समय जल को शुद्ध देखकर चौंक रहे हैं। कभी विषैला और बदबूदार पानी देख गंगा आचमन करने आने वाले लोग आज जल को पीने योग्य मान रहे हैं। गंगा के जिन घाटों पर गंदगी का अंबार लगा रहता था और जहां कई बदबूदार सामान मिलता था, वहां लॉकडाउन के चलते सब साफ है। विश्राम घाट, गऊघाट और ध्रुव घाट पर साफ और स्वच्छ जल देखने को मिल रहा है।
अब डॉल्फिन भी दिखती हैं :- रोहित बताते हैं कि सरकार ने गंगा को साफ करने के काफी प्रयास किए थे लेकिन लॉकडाउन से यह संभव हो सका है। विनय मिश्रा ने कहा कि अब गढ़ के घाट काफी साफ हो चुके हैं। इसमें मछलियां भी दिखने लगी हैं। यहां पर कई बार डॉल्फिन भी नजर आ जाती हैं। जानकारी के अनुसार पूरे विश्व मे मात्र 3500 डॉल्फिन शेष बची है। जिसमें से 80 प्रतिशत भारत में पाई जाती हैं।
फैक्ट्रियां बंद, गंदगी बाहर :- लॉकडाउन में जनता अपने-अपने घरों में है। गढ़ गंगा में कोई भी श्रद्धालु और स्थानीय निवासी स्नान करने नहीं जा रहा है। न ही गंगा में कूड़ा-कचरा डाला जा रहा है। इस कारण गंगा का जल शुद्ध और पीने योग्य हो गया है। इसका एक कारण यह भी है कि गंगा के पास से होकर गुजरने वाली फैक्ट्रियां भी इस समय बंद पड़ी हैं, जिस कारण गंगा तक गंदगी नहीं रही है।

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