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World Thalassemia Day : छह संस्थाएं, 400 ब्लड डोनर बचा रहे थैलेसीमिया मरीजों का जीवन

थैलेसीमिया एक गंभीर जेनेटिक रक्त विकार है, जिसकी गंभीर अवस्था में आमतौर पर पीड़ित को ताउम्र ब्लड ट्रांसफ्यूजन, इलाज व प्रबंधन की जरूरत पड़ती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा थैलेसीमिया इंडिया के आंकड़ों की माने तो देश में हर साल करीब 10,000 बच्चे बीटा थैलेसीमिया बीमारी ..

ग्वालियरMay 08, 2024 / 06:11 pm

रिज़वान खान

World Thalassemia Day थैलेसीमिया एक गंभीर जेनेटिक रक्त विकार है, जिसकी गंभीर अवस्था में आमतौर पर पीड़ित को ताउम्र ब्लड ट्रांसफ्यूजन, इलाज व प्रबंधन की जरूरत पड़ती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा थैलेसीमिया इंडिया के आंकड़ों की माने तो देश में हर साल करीब 10,000 बच्चे बीटा ...

World Thalassemia Day

वर्ल्ड थैलेसीमिया डे आज: 220 से अधिक मरीज रजिस्टर्ड हैं जीआरएमसी में

World Thalassemia Day: ग्वालियर. थैलेसीमिया एक गंभीर जेनेटिक रक्त विकार है, जिसकी गंभीर अवस्था में आमतौर पर पीड़ित को ताउम्र ब्लड ट्रांसफ्यूजन, इलाज व प्रबंधन की जरूरत पड़ती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा थैलेसीमिया इंडिया के आंकड़ों की माने तो देश में हर साल करीब 10,000 बच्चे बीटा थैलेसीमिया बीमारी के साथ पैदा होते हैं। बोन मैरो ट्रांसप्लांट महंगा ऑप्शन होने के कारण अधिकाश पेशेंट ब्लड ट्रांसफ्यूजन से ही काम चलाते हैं। जीआरएमसी के थैलेसीमिया विभाग में ग्वालियर चंबल संभाग से 220 से अधिक बच्चे रजिस्टर्ड हैं, जिन्हें हर माह एक से दो बार ब्लड की जरूरत होती है। इनके लिए शहर की 6 संस्थाएं और 400 से अधिक ब्लड डोनर जीवन बचाने के लिए हमेशा साथ होते हैं।

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थैलेसीमिया के लक्षण

  • शरीर में खून की कमी।
  • नाखून और जीभ में पीलापन आना।
  • चेहरे की हड्डी की विकृति।
  • शारीरिक विकास की गति धीमी होना या रुक जाना।
  • वजन ना बढ़ना व कुपोषण
  • कमजोरी व सांस लेने में तकलीफ
  • पेट में सूजन तथा मूत्र संबंधी समस्याएं।

1938 में आया था प्रथम मामला

भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था। 1994 में पहली बार थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन ने आठ मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया था। इस साल विश्व थैलेसीमिया दिवस की थीम है, जीवन को
सशक्त बनाना, प्रगति को गले लगाना: सभी
के लिए न्यायसंगत और सुलभ थैलेसीमिया उपचार उपलब्ध कराना है।

2010 से उपलब्ध करवा रहे ब्लड

शिप्रा हेल्थ फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ.खोजेमा सैफी ने बताया कि 2010 से नियमित रूप से जरूरतमंदों को नि:शुल्क ब्लड उपलब्ध करवा रहे हैं। पीड़ित मरीजों को गोद लेकर नियमित रक्त उपलब्ध करवाया जाता है। थैलेसीमिया के पेशेंट को हर 8 से 10 दिन में ब्लड चढ़ाया जाता है, इसके लिए हम अधिक से अधिक लोगों को रक्तदान करने का आग्रह भी करते हैं।

हफ्ते भर में ही ब्लड चढ़ाना पड़ जाता है

थैलेसीमिया क्रोनिक ब्लड डिसऑर्डर है। यह एक आनुवांशिक बीमारी है, जिसके कारण आरबीसी में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता। पेशेंट का हीमोग्लोबिन 10 के आसपास मेंटेन रखना पड़ता है। इसका इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही है, जिससे पेशेंट की 90 फीसदी तक सही होने की संभावना रहती है। थैलेसीमिया पेशेंट की बीमारी बढ़ जाने पर कई बार हफ्ते भर में ही ब्लड चढ़ाना पड़ जाता है।
डॉ.अजय गौड़, शिशु रोग विशेषज्ञ

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