ग्वालियर। केंद्र सरकार से योजना के लिए पैसे मिल जाएं और उससे मशीनें खरीद ली जाएं, अधिकारियों की रुचि सिर्फ इसी में होती है। फिर वे मशीनें चाहे कचरा निकलें या कचरा हो जाएं किसी को इससे कोई लेना देना नहीं होता। करोड़ों रुपए की बर्बादी के बाद भी किसी पर कोई कार्रवाई नहीं होती है, इसीलिए इन योजनाओं का आम जनता को लाभ नहीं मिल पा रहा है। एेसा ही एक मामला है स्वशासी आयुर्वेदिक महाविद्यालय ग्वालियर का, जहां केंद्र सरकार की मंशा को मिट्टी में मिला दिया गया। केंद्र सरकार से वर्ष 2002 में 1016 करोड़ रुपए लेकर यहां दवा परीक्षण प्रयोगशाला तो स्थापित कर दी, लेकिन 10 साल में इसे चालू नहीं किया जा सका। यह भी पढ़ें- आखिर ऐसा क्या हुआ कि शिक्षक अब केवल पानी पीकर ही जांचेंगे कॉपियां भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। महालेखा परीक्षक द्वारा कार्यालय प्राचार्य शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय के अभिलेखों की नमूना जांच में पाया गया कि जुलाई 2001 से स्वीकृत इस योजना के लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सका। इस योजना को दो साल में संचालित करना था, जबकि आज तक इस प्रयोगशाला को चालू नहीं किया जा सका। यह भी पढ़ें-यहां की होली है कुछ खास, बरसाने और कुमाऊं की होली का होता है संगम हर साल लेने थे पांच सौ नमूने: भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने औषधियों की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए वर्ष 2000 में योजना बनाई गई, जिसमें राज्य को प्रयोगशाला बनाने के लिए एक बार एक करोड़ की सहायता का प्रावधान था। प्रयोगशाला का संचालन राज्य शासन को करना था। इस योजना में ग्वालियर में स्थापित लैब में हर साल कम से कम 500 औषधि नमूनों के लक्ष्य को पूरा करना था। इस योजना में मिले पैसे भी खर्च हो गए और एक भी सैंपल की जांच नहीं हो सकी। यह भी पढ़ें-जैसा चित्र देखोगे वैसा ही तुम्हारा चरित्र होगा नहीं हुईं नियुक्तियां जांच में पाया गया महाविद्यालय में स्थापित प्रयोगशाला के लिए वैज्ञानिक अधिकारी के दो पद और सहायक स्टाफ के चार पदों के सृजन के लिए शासन को वर्ष 2003, 2005 और 2008 में प्रस्ताव भेजे गए, जब भी याद आता प्रस्ताव भेज दिया जाता। शासन ने भी वर्ष 2009 में पद स्वीकृत कर दिए। यह भी पढ़ें-जानिये क्यों वापस करनी होगी इग्नू को छात्रा की फीस सन् 2002 में मिल गए थे 95 लाख आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा तथा होम्योपैथी संचालनालय (आयुष ) द्वारा जुलाई 2001 में केंद्र को भेजे गए प्रस्ताव पर एक करोड़ रुपए स्वीकृत कर दिए थे। वर्ष 2002 में केंद्र ने 95 लाख आवंटित कर दिए। केंद्र ने इसके लिए कुल 1.16 करोड़ जारी किए। जांच में पाया गया कि यहां भवन निर्माण पर 22.44 लाख, मशीनरी और उपकरण की खरीद पर 54.57 लाख, फर्नीचर पर 3.68 लाख, किताब, स्टेशनरी और बिजली फिटिंग पर 2.03 लाख का व्यय किया गया। शेष बची 33.28 लाख की राशि आयुष संचालनालय के बैंक खाते में रखी गई। तभी से यह उपकरण बेकार पड़े हैं।