श्रोताओं को बांधने के लिए सबसे पहले मंच संभाला आगरा की डॉ. ममता शर्मा ने। उन्होंने अपनी चंद पंक्तियों से सभी के अंदर देशभक्ति का भाव पैदा किया। पंक्तियां थीं ‘हम तो होली दीवाली मनाते रहे, गोलियां दुश्मनों की वो खाते रहे, कौन त्योहार है कब इन्हें क्या पता, राष्ट्र के पर्व की लौ जलाते रहे…।
ऑडियंस को इंतजार था काव्य के महान योद्धा सुरेन्द्र शर्मा को सुनने का। उन्होंने जैसे ही मंच संभाला, तो ग्वालियर ने तालियों की करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया। उन्होंने पढ़ा ‘कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश में राजा हिंदू हो या मुसलमान, जनता तो बेचारी लाश है हिंदू राजा हुआ तो जला दी जाएगी, मुसलमान राजा हुआ तो दफना दी जाएगी…।
श्रोताओं को जोड़ते हुए हरिओम पंवार ने पढ़ा ‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नहीं गाता, दरबारों के लिए कभी अभिनंदन गीत नहीं गाता, गौंण भले जाऊं मौन नहीं हो सकता, पुत्र मोह में मैं शस्त्र त्यागकर द्रोण नहीं हो सकता, कितने ही पहरे बैठा दो मेरी क्रुद्ध निगाहों पर, मैं दिल्ली से बात करूंगा, भीड़ भरे चौराहों पर…।
वहीं कार्यक्रम का संचालन कर रहे तेज नारायण शर्मा ने पढ़ा ‘हम सियासी नवाबों के नवासे नहीं, ये सियासत हमें कब बलम बोलती है, जो सियासत ने बख्शी है हमको हिकारत, उसी की हकीकत कलम बोलती है…।
इसके बाद मंच संभाला उज्जैन के कवि अशोक भाटी ने, उन्होंने पढ़ा ‘पीते हैं तो तबियत खराब होती है, नहीं पिएं तो नीयत खराब होती है, एक दिन पीते एक दिन नहीं पीते, न तबियत खराब न नीयत खराब होती है…
बिहार के शम्भू शिखर ने अयोध्या फैसले पर अपनी राय कुछ इस प्रकार दी ‘सदियों पुराने जख्म को आराम हो गया, जैसे कि खत्म सारा तामझाम हो गया, ये रामलला के ही फैसले का असर है, सारा ही देश देखो राम-राम हो गया…
उज्जैन के हेमंत श्रीमाल ने देश के गद्दारों को केन्द्र बिंदु में लेते हुए पढ़ा ‘ज्ञान का कुंज ये इज्जत का चमन बेच दिया, अपनी जनता का सुकूं चैनो अमन बेच दिया, मां की रक्षा को गहन रखके दगाबाजों ने, चन्द सिक्कों के कमीशन में वतन बेच दिया…