ग्वालियर. डबरा के पास बना प्राचीन ऐतिहासिक किला पिछोर की पहचान है, किले में दरगाह एवं मंदिर बना हुआ है। जिससे हिन्दू-मुस्लिम की मिसाल देखने को मिलती है। यही कारण है कि पिछोर में भाईचार आज भी बरकरार है। प्रत्येक त्योहार हिन्दू-मुस्लिम एक साथ मनाते है। वास्तु कला का अद्भुत नमूना भी किले को आकर्पित करता है। लेकिन देखरेख के अभाव में पिछोर की ऐतिहासिक धरोहर अपनी पहचान खोती जा रही है। चूना पत्थर से निर्मित पिछोर गढ़ी राव हमीर देव की रियासत थी और उन्हीं के शासन काल में 1790 में किला का निर्माण कराया गया था। किले का निर्माण चूना-पत्थर से कराया गया है जिसमें दो बड़े प्रवेश द्वारा सहित किला निर्मित है। किले के ऊपर चढऩे के लिए तीन सराए यानी कि विश्रामग्रह भी बने हुए हैं। वास्तु कला का अद्भुत नमुना वास्तु कला का अद्भुत नमुना देखने को मिलता है। नक्काशी किले की अलग पहचान दिलाता है। किले में कुआं और बावड़ी जिसकों वर्तमान में देखा जा सकता है। रंग महल बना हुए है, जहां राजा द्वारा रंगमंच का आयोजन करते थे। साथ ही चित्रकला की शैली इसके विकास को रेखाकिंत करने वाले सामवेद प्रमाण ही बचे है। चित्रकला में घटनाएं एवं आपदाओं का चित्रण है जिसे देखा जा सकता है। नगर परिषद के पूर्व नपाध्यक्ष अलीशेर खान का कहना है कि किले में ऐतिहासिक धरोहरें है। साथ ही 12-12 फीट की 3 तोपें हैं। इसके अलावा वहां बनी दो दरगाह और बने पांच मंदिर जो निश्चित ही हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है, जिसे पुरातत्व भिागव पर्यटन स्थल घोषित करें। यहां जानिए क्या-क्या है किले में 03 -सराए (विश्राम ग्रह) 02-प्रवेश द्वार 03- बावड़ी, भरा हुआ है पानी 03- चौपड़े (रानी का स्नान घर) 02- कुंड 03- तोपें (12-12 फीट की) 02-दरगाह (मदारशाह बाबा और गुर्जवाले बाबा साहब) 05- मंदिर (हनुमान, शंकर, सिद्धगुरु माहराज, हरसिद्धि माता मंदिर, छोटी माता मंदिर)