आज हम आपको आजाद की जिंदगी से जुड़े वो पहलू बताने जा रहे हैं,जिनसे शायद आप अगत ना हो। बेशक राष्ट्रीय क्रांंतिकारी आंदोलन के दौरान ग्वालियर शहर में क्रांतिकारी गतिविधियां उल्लेखनीय नहीं रहीं,लेकिन महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद के पदचापों की आवाज यह शहर सुन चुका है। दरअसल, ब्रिटिश हुकूमत के लिए दो दशक तक सिरदर्द रहे आजाद ने यहां एक तरह से अज्ञातवास काटा था। ब्रिटिश हुकूमत के नाक के नीचे ग्वालियर में उन्होंने क्रांतिकारियों को परीक्षण दिया। जनकगंज ऐसा इलाका था,जहां उन्होंने अपना अधिकांश समय काटा,जब तक अंग्रेजों के गुप्तचरों को सूचना मिली तब तक वह ग्वालियर से जा चुके थे।
गांधी से प्रभावित थे आजाद
बचपन में आजाद महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे। दिसंबर 1921 में जब गांधी जी के असहयोग आंदोलन का आरम्भिक दौर था, उस समय महज 14 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर इस आंदोलन का हिस्सा बन गए। इसमें अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार भी किया और फिर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया। यहां पर उन्होंने मजिस्ट्रेट के सवालों के जो जवाब दिए,जिसे सुनकर मजिस्ट्रेट भी हिल गया था।
लक्ष्मीनारायण मंदिर में डाला डेरा
आजाद ने शहर के जनकगंज इलाके में लक्ष्मीनारायण मंदिर को अपना ठिकाना बनाया। मंदिर दो मंजिला रहा। मंदिर दूसरी मंजिल पर था और आजाद तलघर में रहते थे। हालांकि वे स्थान बदलते रहते थे। जनकगंज में ही भेलसे वालों के बाड़े,नई सडक़ स्थित शेख की बगिया में वे समय-समय पर रहे। पांडे और एक अन्य युवकों को उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (तब ये इंटर कॉलेज था) से केमिकल मंगवाया,जिसका प्रयोग ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ करना था।
बताया जाता है कि अपने अज्ञातवास के दौरान चन्द्रशेखर आजाद शिवपुरी जिले के खनियाधानां में एक जागीरदार के यहां ड्रायवर बनकर भी रहे। एक दिन जब वे जागीरदार के साथ थे,तभी उन्होंने वहां जागीरदार के पास एक सांप देखा और पिस्तौल निकालकर सांप को गोली मार दी। ये देखकर जागीरदार चौंक गए और आजाद जी से पूछा कि एक ड्रायवर का इतना शानदार निशाना नहीं हो सकता। आप कौन हैं? अपनी पहचान बताएं। पहचान बताने पर उन्होंने आजाद का अभिवादन किया। बाद में आजाद वहां से चले गए।
पुस्तकालय की स्थापना
आजाद ने सन् 1913 में लश्कर के दो युवक रमाशंकर शुक्ल व गौरीशंकर पथिक से शहर में सरस्वती नाम का पुस्तकालय खुलवाया। यहां क्रांतिकारियों व आंदोलन से जुड़ा प्रतिबंधित दस्तावेज पढऩे के लिए रखे जाते थे। ये लाइबेरी राष्ट्रवादी साहित्य अध्ययन का केंद्र बन गया। जिसमें चंबल अंचल के क्रांतिकारी नेता गेंदालाल दीक्षित की खास भूमिका रही।
1905 में प्रिंस ऑफ वेल्स के ग्वालियर आगमन पर आयोजित कार्यक्रम के बहिष्कार की रणनीति बनाई गई। हालांकि इसकी भनक लग गई और नाराज ब्रिटिश सरकार ने व्यापक धरपकड़ अभियान चलाया,लेकिन केवल एक युवक सिरेमल टूंगरनाथ को ही शहर से निष्कासित किया जा सका। 1930 में ग्वालियर में विदेशी वस्त्र बहिष्कार संस्था गठित की गई। संस्था की कर्ता-धर्ता लक्ष्मीबाई गर्दे थीं। ये संस्था काफी समय तक सक्रिय रही। 1908 में स्वदेशी आंदोलन की गतिविधियां भी शहर में दर्ज हुईं। इस संदर्भ में खास तौर पर प्रदर्शनी भी लगाई गई,जो शहर में चर्चा का विषय रही। अंग्रेज रेजीडेंट ने ये प्रदर्शनी हालांकि हटवा दी। इस मामले में 32 युवाओं पर राजद्रोह लगाया गया।
आजादी की लड़ाई के दौरान महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने अपना अज्ञातवास शिवपुरी के भरका वाले महादेव की शरण में बिताया। लोग बताते हैं कि उस समय शहीद आजाद प्रतिदिन महादेव की पूजा करने के लिए मंदिर आते थे। वहीं स्थानीय लोग बताते हैं कि वे यहां कई दिनों तक मंदिर के पुजारी बनकर भी रहे।