मोलभाव न करें
श्रमिक व निर्धन जन न जाने कितनी प्रतिकूलताओं में परिश्रम पूर्वक उत्पाद तैयार करते हैं फिर भी उनके साथ मोल भाव क्यों करते हैं? उन्हें कम कीमत पर बेचने के लिये अब से विवश न करें। जब आप किसी मॉल या बड़ी शॉप से शॉपिंग करते हैं तो क्या मोल भाव करते हैं। नहीं न, तो फिर आप यहां भी रेट कम न कराएं।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहने वाले डॉ. सारिका ठाकुर, राइटर का कहना है कि, पशु-पक्षी और पेड़ पौधे तो परमात्मा के प्रत्यक्ष अंश होते हैं, जिन्हें दीपावली में और अधिक विशेष देखरेख की आवश्यकता होती है। क्योंकि जल, भूमि और वायु के प्रदूषण सहित उन्हें ध्वनि प्रदूषण से भी जूझना पड़ता है और उनके खाने-पानी की व्यवस्था करने वाले भी अपने-अपने जन्मक्षेत्र और मायके भाग चुके होते हैं। इन्हें खोज-खोजकर अपना उत्तरदायित्व निभाएं। ताल व कील पेड़ से निकालें।
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शहर में बने सामान को घर ले जाएं
14 वर्ष के वनवास के उपरांत सीताराम समेत लक्ष्मण घर लौटे तो उनके स्वागत विदेशी सामग्रियों से करेंगे तो क्या वे प्रसन्न होंगे। दीपक और अन्य सामान स्थानीय रूप से निर्मित खरीदें, ताकि आसपास के लोगों के घर, स्थानीय शिल्पियों व कलाकारों के घर आजीविका का प्रकाश फैले।
प्रदूषण रहित मनाएं दिवाली
दिवाली पर लक्ष्मीजी विचरण कर रही होंगी तो क्या वे आतिशबाजी की दुर्गंध वाले आंगन में आना चाहेंगी। क्या कृत्रिम चमक के रंगीन रसायनों से सजाई रंगोली से उन्हें सुख मिलेगा। क्या श्रीरामभक्त हनुमान अपने पिता पवनदेव को प्रदूषित किये जाते देख कुपित नहीं हो जाएंगे। इसलिए प्रदूषण रहित दीपावली मनाएं।
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परिजन नहीं, अब परजन
दीपावली पर आप ये देखें कि, किसके घर में रौनक कम है। उनकी रौनक आप बनें। उनके घर की दीवाली बनें। आप उन अनाथों या वृद्धों के साथ तोरण द्वार सजाएं। उन लोगों के साथ समय बिताएं, जिनके घर का कोई दीपक दुर्घटना में बुझ गया हो। उन वृद्धों से मिलें, जिनके बच्चे विदेश में रह रहे हैं।
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