ग्वालियर। ग्वालियर जैनधर्म की संपदा से बहुत ही धनी शहर है। ग्वालियर का इतिहास इस बात की गवाही देता है कि शहर का जैनधर्म और महावीर स्वामी से कितना पुराना नाता है। ग्वालियर के गोपाचल पर्वत और ग्वालियर दुर्ग पर बनी जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं बताती हैं कि ऋषि गालव की तपोभूमि पर 1200 साल पहले भी सभी धर्म कितने घुले मिले हुए थे।
अद्भुत हैं ये जैन प्रतिमाएं
ग्वालियर दुर्ग जैन प्रतिमाओं से घिरा हुआ है। किले के प्रवेश द्वार से पहले ही पहाडी को काटकर बनाई्र गई जैन प्रतिमाएं आपका मन मोहित कर लेती हैं। इतिहासकार कहते हैं कि ग्वालियर दुर्गपर बनी प्रतिमाएं करीब 1200 साल से पुरानी है। दुर्ग पर 9वीं शताब्दी में प्रतिहार राजाओं द्वारा हिन्दू देवी-देवता और जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं बनवाई गई थीं। इसके बाद १५वीं शताब्दी में तोमर शासकों के समय में यहां जैन धर्म के सभी तीर्थकरों की प्रतिमाएं दुर्ग की पहाड़ी पर उकेरी गईं।
इन तीर्थकरों की प्रतिमाएं हैं खास
ग्वालियर दुग्र पर भगवान महावीर स्वामी, 23वें तीर्थकर पाश्र्वनाथ, नैमीनाथ, प्रथम तीर्थकर ऋषभ देव की प्रतिनाएं बेहद खास हैं। इसके अलाव अन्य तीथकरों की प्रतिताएं भी यहां उकेरी गई हैं ,जो सदियों पुरानी है और आज भी पर्यटकों को लुभाती हैं।
गोपाचल पर लगता है भक्तों का मेला
शहर में गोपाचल पर्वत जिसे इतिहास में गोपगिरी, गोप पर्वत, गोपाद्रि आदि नामों से उल्लेखित किया गया है, जैन समुदाय से जुड़े लोगों के लिए एक बेहद ही पवित्र जगह है। महावीर जयंती पर यहां प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है।
गोपाचल पर्वत के पूर्वी भाग में पत्थर की बाबड़ी है, जहां समूह में २६ चैत्य गुफाएं हैं, जिनमें जैन तीर्थकरों की स्थानक व आसनानस्थ मूर्तियां भी हैं, जो पहाड़ी को काटकर बनाई हैं। यहां भगवान आदिनााि की ५७ फीट ऊंची प्रतिमा है। इन प्रतिमाओं के पैरो की तरफ धर्मसंदेश भी लिखे हुए हैं।
Hindi News / Gwalior / महावीर जयंती: 1200 साल से जैनधर्म का केन्द्र रहा है ये शहर, भक्तों का लगता है मेला