बुराईयों की कुर्बानी से मिलेगी जन्नत
कुर्बानी की रस्म पर जरूरी नहीं किसी जानवर की कुर्बानी दी जाए। किसी जानवर की कुर्बानी देने से तो अच्छा है कि व्यक्ति अपने अंदर छुपी बुराईयों जैसे, शराब, नशा, बुरी आदतें आदि की कुर्बानी देकर भी अल्लाह की नमाज के लिए जाएगा। तो अल्लाह उसे जन्नत में जगह देगा।
इख्तियार मोहम्मद शाह, भंडारी, बाबा कपूर दरगाह किलागेट
काबिल ही करे सुन्नत
अल्लाह कभी नहीं कहता कि कर्ज लेकर मेरी सुन्नत की जाए। जो इस काबिल है वही सुन्नत करे। कर्ज लेकर की गई सुन्नत को खुदा कभी कुबूल नहीं करता है। वहीं बिना वजह से भी किसी की कुर्बानी दी जाना गलत है।
हाजी एके खान, सदर अजुंमन तहजीव व इत्तेहाद
इंसानियत के नाते गलत है कुर्बानी
परंपराओं के तहत जो सिलसिला चला आ रहा है उसी को अब तक सभी मान रहे थे, लेकिन अब लोगों ने अपनी सोच को बदलना शुरू कर दिया है। इंसानियत के नाते किसी की भी जान लेना गलत है।
शाकिर खान, समाजसेवी
आस्था-अकीदा का खेल
ये आस्था और अकीदा का खेल है। जो वक्त के साथ बड़े बदलाव के रूप में नजर आ रहा है। जो सुन्नतें है उन्हें भी निभाना जरूरी है, लेकिन इस समय को देखकर महसूस होने लगा है कि आने वाले वक्त में ये सब सुन्नतें और प्रथाएं खत्म हो जाएंगी।
आमिर फारुखी, सेक्रेटरी बज्मे ऊर्दूव्यापार पर भी दिखने लगा है असर
लोगों की बदली सोच का असर व्यापार पर भी देखने को मिल रहा है। पहले की अपेक्षा बकरे भी कम बिक रहे हैं। बकरों की मंहगाई भी बड़ा कारण है। आज एक बकरे की कीमत १५००० रुपए है, जिसे आम आदमी के लिए कठिन है। इसलिए एक ही परिवार के लोग मिलकर बकरा खरीदते देखे जा रहे हैं।
हाजी वहीद, कुरैशी व्यापारी