केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी. दामोदरन ने बताया कि संस्थान का प्रयास है कि पनियाला पौधों की फलत ज्यादा हो। फलों की गुणवत्ता भी बेहतर हो। इसलिए अनेक प्रयास हो रहे हैं। बागवानी करने वाले किसानों को कैनोपी प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
गोरखपुर, देवरिया और महाराजगंज में पाया जाता है पनियाला पौधा (Paniyala Plant)
उल्लेखनीय है कि पनियाला के पेड़ उत्तर प्रदेश के
गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज क्षेत्रों में पाये जाते हैं। पांच छह दशक पहले इन क्षेत्रों में मिलने वाला पनियाला अब लुप्तप्राय है। स्वाद में इसका फल खट्टा कुछ मीठा और थोड़ा सा कसैला होता है।
स्वाद में खास होने के साथ यह फल औषधीय गुणों से भरपूर होता है। पनियाला को लुप्त होने से बचाने और बेहतर गुणवत्ता के पौधे तैयार करने के लिए पिछले साल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने गोरखपुर और पड़ोसी जिलों के पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वे किया था। इस दौरान संस्थान के वैज्ञानिक डा. दुष्यंत मिश्र एवं डा. सुशील कुमार शुक्ल ने कुछ स्वस्थ पौधों से फलों के नमूने लिए थे।
दोनों वैज्ञानिकों ने बताया कि अब संस्था की प्रयोगशाला में इन फलों का भौतिक एवं रासायनिक विश्लेषण कर उनमें उपलब्ध विविधता का पता लगाया जाएगा। उपलब्ध प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन कर उनको संरक्षित करने के साथ कलमी विधि से नए पौधे तैयार कर इनको किसानों और बागवानों को उपलब्ध कराया जाएगा।
किसानों को बागवानी के साथ बाजार भी उपलब्ध कराएगी योगी सरकार
निदेशक टी. दामोदरन का कहना है कि संस्था किसानों को तकनीक के अलावा बाजार उपलब्ध कराने तक सहयोग करेगी। बता दें कि पनियाला के पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टीज होती है। जिससे पेट के कई रोगों का उपचार संभव होता है। स्थानीय स्तर पर पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूड़ों में दर्द, इनसे खून आना, कफ, निमोनिया और खराश आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है। फल लीवर के मरीजों में भी उपयोगी पाया गया है। पनियाला के फल में विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट भी मिलते हैं। पूर्वी
उत्तर प्रदेश के छठ त्योहार पर इसके फल 300 से 400 रुपए प्रति किलो तक बिक जाते हैं। इन्हीं कारणों से इस फल को भारत सरकार द्वारा गोरखपुर का भौगोलिक उपदर्शन (ज्योग्राफिकल इंडिकेटर) बनाने का प्रयास जारी है।
पनियाला (Paniyala Plant) के फलों को लंबे समय तक रखा जा सकता है सुरक्षित
पनियाला के फलों को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के वरिष्ठ हॉर्टिकल्चर वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के अनुसार, जीआई टैग मिलने का लाभ न केवल गोरखपुर के किसानों को बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के बागवानों को भी मिलेगा। ये सभी जिले समान कृषि जलवायु क्षेत्र में आते हैं। इन जिलों के कृषि उत्पादों की खूबियां भी एक जैसी होंगी।