lok sabha election 2024: आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी को साल 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। वर्ष 1967 के चुनाव में सुचेता कृपलानी ने गोंडा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। उन्हें जीत भी हासिल हुई। सबसे खास बात यह रही की गोंडा की सांसद रहते हुए उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। वर्ष 1971 से इस सीट पर राजघराने ने सियासत शुरू की। बीजेपी के मौजूदा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह के पिता आनंद सिंह कांग्रेस के टिकट पर यहां से चार बार सांसद बने। दल बदल कर दो बार चुनाव हारने के बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे कीर्तिवर्धन सिंह को दे दी। कीर्ति वर्धन सिंह भी दो बार सपा और दो बार भाजपा से चुनाव जीते। मौजूदा समय में बीजेपी से सांसद है। और पार्टी ने एक बार फिर इन पर भरोसा जताते हुए इस लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है।
lok sabha election 2024: गोंडा लोकसभा सीट पर आठ बार जीत दर्ज की लेकिन एक ही दल में नहीं लगा दिल वर्ष 1971 के चुनाव में मनकापुर राजघराने से आनंद सिंह कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे उन्हें जीत हासिल हुई। इसके बाद 1980, 1984, 1989 में लगातार कांग्रेस के आनंद सिंह जीतते रहे। इसके बाद राममंदिर आंदोलन की लहर चली और 1991 के चुनाव में यहां से बीजेपी के टिकट पर बृजभूषण सिंह चुनाव जीते। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह ने गोंडा लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी आनंद सिंह (कीर्तिवर्धन सिंह के पिता) के सामने ताल ठोंकी थी। आनंद सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वर्ष 1996 के चुनाव में वर्तमान सांसद कीर्तिवर्धन सिंह के पिता आनंद सिंह हाथ का साथ छोड़कर साइकिल पर सवार हो गए। सपा के टिकट पर चुनाव लड़े। बीजेपी ने बृजभूषण सिंह की पत्नी केतकी सिंह को प्रत्याशी घोषित कर दिया। इस चुनाव में आनंद सिंह को केतकी सिंह के सामने राम मंदिर लहर के चलते पराजय का सामना करना पड़ा। दो बार चुनाव हारने के बाद राजा आनंद सिंह वर्ष 1998 के चुनाव में खुद चुनाव ना लड़कर अपने बेटे कीर्तिवर्धन सिंह को सपा के टिकट से मैदान में उतारा। बीजेपी ने भी बृजभूषण सिंह की पत्नी को टिकट न देकर बृजभूषण सिंह को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन इस बार बृजभूषण सिंह को कीर्तिवर्धन सिंह ने पराजित कर सपा का परचम लहराया। इसके बाद वर्ष 1999 के चुनाव में फिर एक बार सपा से कीर्तिवर्धन सिंह और बीजेपी से बृजभूषण सिंह आमने-सामने हुए। लेकिन इस बार बाजी पलट गई। बृजभूषण सिंह ने जीत हासिल की। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बृजभूषण सिंह को बलरामपुर से टिकट दिया। यहां से बीजेपी ने अपने विधायक घनश्याम शुक्ला को प्रत्याशी बनाया कीर्तिवर्धन सिंह सपा से चुनाव लड़े। चुनाव जिस दिन संपन्न हुआ उसी दिन घनश्याम शुक्ला की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। हालांकि घनश्याम शुक्ला की मौत को लेकर तरह-तरह के सवाल भी उठे। लेकिन इस चुनाव में कीर्तिवर्धन सिंह ने जीत दर्ज किया। वर्ष 2009 के चुनाव में कीर्ति वर्धन सिंह साइकिल का साथ छोड़कर हाथी पर सवार हो गए। लेकिन इस बार कीर्तिवर्धन सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा। यहां से सपा के टिकट पर बेनी प्रसाद वर्मा ने जीत हासिल किया। राजघराने का दल बदलने वाला सिलसिला यहीं नहीं थमा। अगला चुनाव 2014 में बीजेपी से लड़े और जीते। वर्ष 2019 का भी चुनाव बीजेपी से लड़े और जीते। एक बार फिर इस चुनाव में राजघराने के कुंवर कीर्तिवर्धन सिंह भाजपा के चुनाव चिन्ह पर मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। कुल मिलाकर गोंडा लोकसभा सीट से राजघराने से पिता पुत्र ने मिलकर आठ बार जीत दर्ज की। इस दौरान पिता पुत्र के लगभग सभी प्रमुख दलों में आने-जाने का सिलसिला जारी रहा।