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रावण काल से जुड़ा है इतिहास गाजियाबाद शहर में स्थित दूधेश्वरनाथ मठ के इतिहास को रावण काल से जोड़ा जाता है। इसे स्वयंभू मंदिर माना जाता है। दूधेश्वर महादेव मठ मंदिर में जमीन से साढ़े तीन फीट नीचे स्थापित स्वयंभू दिव्य शिवलिंग है। मान्यता है कि यहां भगवान शिव को जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन के पहले साेमवार को भी यहां भक्तों की लंबी-लंबी लाइनें लग गई थीं। भक्त देर रात को ही लाइन लगाकर खड़े हो गए थे। यह भी पढ़ें
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रावण के पिता ने की थी तपस्या कहा जाता है कि लंकापति रावण के पिता विश्रवा ने यहां कठोर तप किया था। रावण ने भी यहां पूजा-अर्चना की थी। इसकी गिनती देश के आठ प्रमुख मठों में होती है। पुराणों के अनुसार, रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहां अपना पहला सिर चढ़ाया था। देखें वीडियो: सावन के पहले सोमवार पर मंदिरों में गुंजे शिव के जयकारे पुराणों में मिलता है वर्णन पुराणों के अनुसार, हरनंदी (हिरण्यदा) नदी के किनारे हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है। यहां पुलस्त्य के पुत्र एवं रावण के पिता विश्रवा ने घोर तपस्या की थी। कालांतर में हरनंदी नदी का नाम हिंडन हो गया। साथ ही हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग ही दूधेश्वर महादेव मठ के नाम से जाना गया।
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एक और कथा इस मठ की एक और प्रचलित कथा भी है। कहा जाता है कि गांव कैला की गायें यहां चरने के लिए आती थीं। बताया जाता है कि टीले के ऊपर पहुंचने पर गायों के थन से अपने आप दूध गिरने लगता था। जब यह बात ग्रामीणों को पता चली तो उन्होंने यहां खुदाई कराई, जिसमें उन्हें यह शिवलिंग मिला। इस वजह से इसका नाम दूधेश्वर या दुग्धेश्वर मठ पड़ा। यह भी पढ़ें