पौराणिक कथा के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से एकादशियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से कहा, “भगवन! आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है?” भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हे राजन! इस एकादशी का नाम योगिनी है। समस्त जगत में जो भी इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है, प्रभु की पूजा करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
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योगिनी एकादशी का व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध है
इस दिन व्रत रखने वाले अपने जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं, भोग-विलास का आनंद लेते है और अंत काल में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी का यह उपवास तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। तब युद्धिष्ठर ने कहा, प्रभु! योगिनी एकादशी के महत्व को आपके मुखारबिंद से सुनकर मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई है कृपया इसके बारे थोड़ा विस्तार से बताएं। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा, हे धर्मश्रेष्ठ! मैं पुराणों में वर्णित एक कथा सुनाता हूं उसे ध्यानपूर्वक सुनना।
भगवान शिव के उपासक
स्वर्गलोक की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम के राजा राज किया करते थे, वह बड़े ही धर्मी राजा थे और भगवान शिव के उपासक थे। आंधी आये तूफान आए कोई भी बाधा उन्हें भगवान शिव की पूजा करने से नहीं रोक सकती थी। भगवान शिव के पूजन के लिए हेम नामक एक माली फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल देकर जाया करता। हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था, वह बहुत सुंदर स्त्री थी। एक दिन क्या हुआ कि हेम पूजा के लिये पुष्प तो ले आया लेकिन रास्ते में उसने सोचा अभी पूजा में तो समय है क्यों न घर चला जाए। फिर उसने अपने घर की राह पकड़ ली।
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कुबेर पुष्प
घर आने बाद अपनी पत्नी को देखकर वह कामासक्त हो गया और उसके साथ रमण करने लगा। उधर, पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प न आने से व्याकुल हुए जा रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं पंहुचा तो राजा ने अपने सैनिकों को भेजकर उसका पता लगाने के लिए कहा, सैनिकों ने लौटकर बता दिया कि महाराज वह महापापी है, महाकामी है, अपनी पत्नी के साथ रमण करने में व्यस्त था, यह सुनकर तो कुबेर का गुस्सा सांतवें आसमान पर पंहुच गया।
उन्होंने तुरंत हेम को पकड़ लाने के लिए कहा, अब हेम कांपते हुए राजा कुबेर के सामने खड़ा था, क्रोधित कुबेर ने कहा, “हे नीच, महापापी! तुमने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर किया है। मैं तूझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।
मार्कंडेय ऋषि
अब कुबेर के शाप से हेम माली भूतल पर पंहुच गया और कोढ़ग्रस्त हो गया। स्वर्गलोक में वास करते-करते उसे दुखों की अनुभूति नहीं थी, लेकिन यहां पृथ्वी पर भूख-प्यास के साथ-साथ कोढ़ से उसका सामना हो रहा था। उसे उसके दुखों का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था, वह एक दिन घूमते-घूमते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। आश्रम की शोभा देखते ही बनती थी, ब्रह्मा की सभा के समान ही मार्कंडेय ऋषि की सभा का नजारा भी था।
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शाप से छुटकारा मिला
वह उनके चरणों में गिर पड़ा और महर्षि के पूछने पर अपनी व्यथा से उन्हें अवगत करवाया। अब ऋषि मार्कण्डेय ने कहा, तुमने मुझसे सत्य बोला है इसलिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत यदि तुम करोगे तो तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगे। अब माली ने ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके बताए अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया, इस प्रकार उसे अपने शाप से छुटकारा मिला और वह फिर से अपने वास्तविक रूप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा।
88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का पुण्य
भगवान श्री कृष्ण कथा सुनाकर युधिष्ठर से कहने लगे, “हे राजन! 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात जितना पुण्य मिलता है, उसके समान पुण्य की प्राप्ति योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास रखने से होती है और व्रती इस लोक में सुख भोग कर उस लोक में मोक्ष को प्राप्त करता है।
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