मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भादो माह की अष्टमी तिथि को आधी रात को हुआ था। इसी खुशी में जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का त्यौहार मनाया जाता है।
दही हांडी उत्सव का इतिहास पौराणिक कथाओं के अनुसार, अत्याचारी कंस की हत्या देवकी और वासुदेव की 8वीं संतान से होनी थी। इसलिए देवकी के जो भी संतान होती, कंस उसे मार देता था। लेकिन 8वीं संतन श्रीकृष्ण को वासुदेव जी यशोदा और नंदजी के यहां वृंदावन ले गए। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण की बाल लील की शुरुआत हुई।
बचपन में भगवान श्रीकृष्ण मक्खन और दही बहुत पसंद था। यही कारण था कि वे अपने दोस्तों की टोली के साथ घर-घर जाकर माखन चुरा लेते थे। उनकी इस शराररत से गांव के लोग मक्खन और दही को बचाने के लिए मटकी को काफी ऊंचाई पर टांग देते थे।
इसके बावजूद बाल गोपाल दोस्तों के साथ माखन चुरा लेते थे और मटकी को फोड़ देते थे। तब से ही दही हांडी उत्सव मनाने की शुरुआत हुई।